Tuesday, April 29, 2014

पीपल्स फोरम 5/426, विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 : श्री अशोक कुमार गोयल के विरुद्ध पंजीकृत एफआईआर संख्या 189/2014 धारा 228, 353, 504, 506 आईपीसी एवं 7 क्रिमिनल ला अमेंडमेंट एक्ट के सम्बन्ध में

[B] पीपल्स फोरम[/B]
[B] 5/426, विराम खंड, गोमती नगर,
लखनऊ-226010[/B]

[B]सेवा में,
मा० राज्यपाल,
उत्तर प्रदेश,
लखनऊ,[/B]

[B]विषय- श्री अशोक कुमार गोयल के विरुद्ध पंजीकृत एफआईआर संख्या
189/2014 धारा 228, 353, 504, 506 आईपीसी एवं 7 क्रिमिनल ला अमेंडमेंट
एक्ट के सम्बन्ध में[/B]

[B]महोदय,
कृपया[/B] निवेदन है कि हम नूतन ठाकुर, सलीम बेग, देव दत्त
शर्मा, अखिलेश सक्सेना, देवेन्द्र कुमार दीक्षित, अनुपम पाण्डेय, महेंद्र
अग्रवाल, अलोक कुमार सिंह तथा उर्वशी शर्मा लखनऊ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता
हैं। हम आपके सम्मुख दिनांक 24/04/2014 को श्री अशोक कुमार गोयल के
विरुद्ध पंजीकृत एफआईआर संख्या 189/2014 धारा 228, 353, 504, 506 आईपीसी
एवं 7 क्रिमिनल ला अमेंडमेंट एक्ट के सम्बन्ध में कतिपय तथ्य प्रस्तुत कर
रहे हैं:

[B]पहली [/B]बात तो यह है कि श्री गोयल ने 21/04/2014 तथा दिनांक
24/04/2014 को श्री अरविन्द सिंह बिष्ट, सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश
सूचना आयोगे के विरूद्ध अनियमित ढंग से कार्य करने के सम्बन्ध में मा०
राज्यपाल को ज्ञापन दिए थे जिसमे उन्होंने श्री बिष्ट के कार्यकलापों पर
गंभीर टिप्पणी करते हुए इसकी उच्चस्तरीय जांच और कार्यवाही की मांग की
थी। संभव है कि इन शिकायतों के कारण श्री बिष्ट श्री गोयल से पूर्व से
मनोमालिन्य रखे हों।

[B]दूसरी [/B]बात यह कि यह कथित घटना दिनांक 24/04/2014 को लगभग दो बजे
घटी थी लेकिन देखने योग्य बात यह है कि जहां घटना श्री बिष्ट के कार्यालय
कक्ष की बतायी जा रही है, वहीँ घटना की एफआइआर श्री बिष्ट अथवा उनके किसी
कर्मचारी द्वारा नहीं करा कर हजरतगंज थाने के उपनिरीक्षक श्री कमलाकांत
त्रिपाठी द्वारा कराई गयी।

[B]तहरीर [/B]में श्री त्रिपाठी ने कहा है कि वे मौके पर मौजूद थे
क्योंकि उनकी ड्यूटी लगाई गयी थी जबकि सत्यता यह है कि वे मौके पर आये ही
नहीं थे। उन्होंने थाने पर समय लगभग 11 बजे रात्रि को श्री गोयल से मिलने
पर उन्हें बताया कि हमें आपके खिलाफ श्री बिष्ट के कहने और उनके दवाब में
कार्यवाही करनी पड़ी। मैं मौके पर नहीं था, मैं भ्रमण पर गया था, मैं आपको
पहचानता तक नहीं हूँ. श्री त्रिपाठी का यह अभिकथन अपने आप में अत्यंत
महत्वपूर्ण है।

[B]तीसरी [/B]बात यह कि श्री गोयल ने भी इस घटना के बारे में समय लगभग
8:43 रात्रि को अपने ईमेल को भेजी थी जिसमे उन्होंने इस कथित घटना के
सम्बन्ध में अपने स्तर से तथ्य प्रस्तुत करते हुए एफआइआर दर्ज करने का
निवेदन किया जिसे पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

[B]चौथी[/B] बात यह कि श्री गोयल ने हजरतगंज थाने में अपनी गिरफ़्तारी के
बाद इन्स्पेक्टर श्री अशोक कुमार वर्मा को वही तहरीर तमाम प्रेस वालों के
सामने एफआइआर हेतु दुबारा दिया जिस पर श्री वर्मा ने कहा कि मेरे
कार्यालय में उसे दे दें, आपकी एफआइआर भी लिखी जायेगी लेकिन ऐसा आज तक
नहीं हुआ है।

[B]पांचवी[/B] बात यह कि हमें बताया गया है कि आयोग के कॉरिडोर और कक्ष
में सीसीटीवी कैमरा है। यदि यह सही है तो सारी सच्चाई सीसीटीवी कैमरा से
स्वतः ज्ञात हो जाएगा।

[B]छठी[/B] बात यह है कि जब श्री गोयल श्री बिष्ट के कक्ष में थे तो उस
समय कक्ष में श्री बिष्ट और श्री गोयल के अलावा एक नगर निगम से अधिवक्ता
श्री चौहान, श्री बिष्ट की महिला स्टेनो, एक शॉर्ट हैंड टाइपिस्ट तथा
अन्य सुनवाई वाले लगभग आठ लोग थे। श्री गोयल का कहना है कि यदि इन सभी
लोगों से ईमानदारी से पूछताछ होगी तो पूरी बात अपने आप सामने आ जायेगी.
लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि यह पूछताछ ईमानदारी से और अलग-अलग निष्पक्ष
हो।

[B]सातवीं[/B] बात यह कि श्री बिष्ट, श्री अशोक कुमार वर्मा, श्री बिष्ट
के कार्यालय, श्री कमलाकांत त्रिपाठी आदि के मोबाइल तथा लैंडलाइन नंबर के
कॉल डिटेल से भी काफी कुछ सच्चाई सामने आ जायेगी।

[B]आठवीं[/B] बात यह कि यह सभी जानते हैं कि आयोग में भारी संख्या में
पुलिसबल तैनात है। श्री गोयल एक सामान्य वरिष्ठ नागरिक हैं। जाहिर सी बात
है कि श्री गोयल जैसा व्यक्ति इतने भारी पुलिसबल के सामने किस प्रकार से
कुछ भी ऐसा कर सकता है तो कुछ एफआइआर में लिखाया गया है।

[B]सबसे[/B] महत्वपूर्ण बात यह है कि कल हममे से नूतन ठाकुर, सलीम बेग,
देवेन्द्र कुमार दीक्षित, महेंद्र अग्रवाल श्री बिष्ट से आयोग के
कार्यालय में मिले थे जहां कुछ देर के लिए श्री बिष्ट से मिलने श्री
अमिताभ ठाकुर, आईपीएस भी आये थे। इस वार्ता के समय श्री बिष्ट के कक्ष
में आयोग के भी कुछ अधिकारी मौजूद थे।

[B]श्री बिष्ट[/B] ने हमारे साथ हुई वार्ता में स्पष्ट रूप से स्वीकार
किया कि उनके कक्ष में कोई भी ऐसी घटना नहीं घटी थी जिसे आपराधिक घटना
कही जाए। उन्होंने कहा कि श्री गोयल उनके पास जब आये थे तब उन्होंने उचित
ढंग से बर्ताव नहीं किया था और बिना किसी कारण के अचानक से नाराजगी जाहिर
करनी शुरू कर दी थी। श्री बिष्ट ने कहा कि उन्होंने कई बार श्री गोयल को
शांत रहने के लिए कहा लेकिन श्री गोयल लगातार नाराज़ रहे और बार-बार यही
कहते रहे कि उनके द्वारा मांगी गयी सूचना तत्काल मांगा कर प्रदान की जाए।
श्री बिष्ट के अनुसार वे श्री गोयल के इस आचरण से अत्यंत क्षुब्ध हुए और
उन्होंने श्री गोयल को कुछ समझाना चाहा पर वे नहीं माने। अंत में बाध्य
हो कर श्री बिष्ट ने उन्हें कक्ष से निकलवा दिया। श्री बिष्ट ने कहा कि
कक्ष में इतनी ही घटना हुई थी और इससे ज्यादा कुछ भी उनके कक्ष में नहीं
हुआ था। उन्होंने कहा कि बाहर क्या हुआ और एफआइआर कैसे हुआ वे कत्तई नहीं
जानते। उन्होंने यह भी कहा कि श्री गोयल के जाने के बाद सरकारी कार्य
सुचारू रूप से सम्पादित होता रहा। श्री बिष्ट द्वारा कही इन बातों के
हममे से हर आदमी गवाह है।

[B]इसके[/B] विपरीत उपनिरीक्षक द्वारा लिखवाए एफआइआर के अनुसार उन्होंने
देखा कि श्री गोयल कक्ष में टेबल पर हाथ मार रहे थे, गाली-गलौज कर रहे
थे, उपनिरीक्षक के भी हाथापाई की और उनका बन्दूक भी पकड़ने का प्रयास
किया।

[B]अतः[/B] एक ओर श्री बिष्ट दूसरी बात कह रहे हैं और एफआइआर बिलकुल
दूसरी बात कह रहा है जबकि दोनों एक ही घटनास्थल, एक ही कक्ष से सम्बंधित
हैं। जाहिर सी बात है कि इनमे एक सही और दूसरा गलत कह रहा है क्योंकि यदि
श्री बिष्ट की बात सही मानी जाए तो उपनिरीक्षक उस कक्ष में आये तक नहीं
थे और उपनिरीक्षक ने पूरी कहानी बना दी। श्री बिष्ट वरिष्ठ प्राधिकारी
हैं, अतः उनकी बात नहीं मानने का कोई भी कारण नहीं है। दूसरी ओर
उपनिरीक्षक स्वयं श्री गोयल से थाने में स्वीकार भी किया था कि वे उन्हें
जानते तक नहीं और उन्होंने श्री बिष्ट के कहने पर यह एफआइआर लिखवाई थी।

[B]अंतिम[/B] बात यह कि यदि उपनिरीक्षक की बात वास्तव में सही होती तो वे
श्री गोयल को तत्काल गिरफ्तार कर थाने ले जाते ना कि शाम में साढ़े छः बजे
एफआइआर करके श्री गोयल को घर से गिरफ्तार किया जाता। यदि श्री गोयल ने
वास्तव में उतना जघन्य अपराध किया होता कि दरोगा की वर्दी पकड़ ले,
हाथापाई करे, गालीगलौज करे और असलहा तक पकड़ ले, तो सामान्य सी सोचना वाली
बात है कि इतना कुछ करने के बाद उन्हें आयोग से यूँ ही नहीं जाने दिया
जाता। वह भी तब जब आयग में भारी संख्या में पीएसी सहित अन्य तमाम पुलिसबल
होता है।

[B]साथ [/B]ही यहाँ यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि श्री गोयल जैसे वरिष्ठ
नागरिक की उतने पुलिसबल के सामने बदतमीजी और आपराधिक कृत्य करने की कितनी
हिम्मत है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हमारी निम्न प्रार्थना है-

[B]1.[/B] तत्काल श्री अशोक कुमार गोयल द्वारा प्रेषित एफआइआर दिनांक
24/04/2014 भी पंजीकृत किया जाए (प्रतिलिपि संलग्न)

[B]2. [/B]इन दोनों एफआइआर की विवेचना सीबी-सीआईडी से कराई जाए ताकि
निष्पक्ष विवेचना हो सके

[B]3.[/B] श्री गोयल को लगातार आयोग जाना पड़ता है. इस घटना से वे काफी
आतंकित हो चुके हैं और उन्हें भय है कि उन्हें फिर इसी तरह फंसाया जा
सकता है और हर प्रकार से व्यक्तिगत क्षति पहुंचाने का प्रयास किया जा
सकता है। अतः उन्हें तत्काल सुरक्षा प्रदान किया जाए।

[B]4[/B]. श्री गोयल द्वारा श्री अरविन्द सिंह बिष्ट और अन्य सूचना
आयुक्तों के खिलाफ भेजे गए प्रतिवेदनों की तत्काल जांच करा कर उचित
कार्यवाही की जाए (प्रतिलिपि संलग्न)

Lt No- NRF/AKB/01

Dt- 29/04/2014

भवदीय
[B]हम सब आरटीआई कार्यकर्ता
संपर्क- # 094155-34525[/B]

Monday, April 28, 2014

बड़े बुजुर्गों के अपमान का आयोग न बनाएं बिष्ट जी!

बड़े बुजुर्गों के अपमान का आयोग न बनाएं बिष्ट जी!

प्रभात रंजन दीन

http://prabhatranjandeen.blogspot.in/2014/04/blog-post_27.html

कैसे लोकतंत्र चलेगा बिष्ट जी! पत्रकार आम लोगों के लिए प्रतिबद्ध होने
का दावा तो करता है लेकिन सत्ता जैसे ही किसी पत्रकार को अपने तंत्र में
शामिल कर लेती है, पत्रकार नेताओं से ज्यादा सत्तादंभी हो जाता है।
नेताओं ने यही कुचक्र तो किया है। पत्रकार समुदाय को विधिक रूप से समाज
में स्थापित करने के बजाय उसने पत्रकारों को व्यक्तिगत रूप से उपकृत किया
और इस उपकार की वजह से समाज का भारी नुकसान और संविधान का भीषण अपमान हो
रहा है। अरविंद सिंह बिष्ट उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के एक आयुक्त
चुने गए हैं। पुराने पत्रकार रहे हैं। जब पत्रकार थे तब मित्र भी थे। ऐसे
पत्रकारों के सरकारी तंत्र में आने से सरकार में चारित्रिक परिवर्तन की
सम्भावना बननी चाहिए, लेकिन होता उल्टा है। पत्रकार में ही सरकारी चरित्र
ठाठें मारने लगता है और मूल उद्देश्य नैतिक होने के बजाय 'नेताइक' हो
जाता है। सूचना आयुक्त बनना तो एक अवसर था बिष्ट साहब, कि इतिहास में
आपका नाम दर्ज हो जाता। सूचना का संवैधानिक अधिकार चाहने वाले आम लोगों
की भीड़ आपका नाम सम्मान से लेती, लेकिन आपमें जन-सम्मान पाने की वह
धार्यता नहीं है। मैं कभी भी कोई लेख व्यक्तिपरक नहीं लिखता, लेकिन आपने
बुजुर्ग आरटीआई ऐक्टिविस्ट अशोक कुमार गोयल को जिस तरह अपमानित कर उन्हें
जेल भिजवाया वह संवैधानिक-धर्म-चरित्र की घोर अवहेलना है और इसके खिलाफ
पूरे समाज को खड़े होने की आवश्यकता है। एक बुजुर्ग समाजसेवी का अपमान
व्यक्ति-केंद्रित नहीं, समाज केंद्रित है, लिहाजा एक सामान्य नागरिक का
संवैधानिक दायित्व निभाते हुए मैं यह तकलीफ लिख रहा हूं। श्री गोयल ने
सूचना ही तो मांगी थी! अगर सरकार से जुड़ी सूचनाएं आम लोगों तक नहीं
पहुंचाने के लिए ही आप कटिबद्ध थे तो सूचना आयुक्त बनने के लिए इतने
उत्साहित क्यों थे! या सरकार के उपकार का आप इसी तरह प्रति-उपकार सधाना
चाह रहे हैं? बिष्ट जी! अभी ज्यादा दिन भी नहीं बीते हैं। घंटों दफ्तर
में बैठ कर मेरे साथ आप सामाजिक सरोकारों पर बातें करते थे, आमजन की
समस्याओं पर लिखी खबरों पर आप खास तौर पर बधाई देते थे। अब वो क्या आप ही
हैं बिष्ट साहब? अशोक कुमार गोयल जब अखबार के दफ्तर में आते हैं तो हम
पत्रकार कुर्सी से खड़े होकर उनका सम्मान करते हैं। समाज के दुख-दर्द के
प्रति गोयल साहब इतने संजीदा हैं कि हम पत्रकार उनके सामने खुद को बहुत
ही छोटा महसूस करें। ऐसे सज्जन सम्मानित व्यक्ति को धक्के मार कर कक्ष से
बाहर निकाल देने का फरमान आपने कौन सा बिष्ट होते हुए जारी किया होगा, यह
समझने में मैं असमर्थ नहीं हूं। आपने कभी आम आदमी की तरह समाज में
गलियों-नुक्कड़ों पर आम सुविधाओं के लिए धक्के खाए हैं? कभी भी? अगर
एक-दो धक्के भी खाए होते तो धक्के खा-खाकर उम्र के हाशिए पर जा चुके गोयल
साहब को धक्का मार कर बाहर कर देने का आदेश देने वाले अरविंद सिंह तुगलक
आप न बने होते। ...और सामाजिक संस्कारों की सीख भी अगर ध्यान में हो तो
किसी बुजुर्ग ने थोड़ा तल्खी से कह भी दिया तो क्या पिता को हम धक्के मार
कर घर से बाहर कर देंगे? बिष्ट जी, सत्ता अधैर्य देती है, इसीलिए तो
चरित्रहीन मानी जाती है। सूचना आयुक्त की संवैधानिक पीठ पर बैठे व्यक्ति
का सत्ता-अधैर्य अशोभनीय और क्षोभनीय दोनों है। आपने तो गोयल साहब को
धक्के मार कर अपने कक्ष से बाहर निकलवा दिया और देर रात में भारी
पुलिस-फौज भेजकर उन्हें घर से भी उठवा लिया। रातभर उन्हें हजरतगंज
कोतवाली में बिठाए रखा गया। ऐसा क्या गोपनीय था कि इस 'महान-गिरफ्तारी'
के बारे में एसएसपी से भी छुपाया गया? बुजुर्ग गोयल साहब अचानक रातोरात
इतने बड़े अपराधी कैसे बन गए कि पुलिस ने तमाम संगीन धाराओं के साथ-साथ
'क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऐक्ट' के तहत भी उनपर मुकदमा ठोक दिया? आपने और
कुछ पुलिस अधिकारियों ने मिल कर पूरे प्रदेश को क्या अपनी जमींदारी समझ
ली है? बिष्ट जी, आप जब पत्रकार थे तब आपने भी लिखा ही होगा पुलिस की ऐसी
बेहूदा हरकतों के खिलाफ! तब और अब में व्यवहार का नजरिया कैसे बदल गया कि
आपने यह महसूस भी नहीं किया कि 'हाई ब्लड प्रेशर' और 'ब्लड शुगर' के मरीज
बुजुर्ग को पुलिस ने रात भर दवा भी नहीं लेने दी तो उन पर क्या गुजरी
होगी! इसे श्री गोयल की सुनियोजित हत्या की कोशिश क्यों नहीं माना जाए?
आप आज पत्रकार होते तो क्या आप यह सामाजिक कोण अपनी दृष्टि में नहीं
रखते? अभी भी वक्त है बिष्ट जी, विचार करिए, बुजुर्गों के सम्मान का समाज
को संस्कारिक संदेश दीजिए और बड़े हो जाइये...

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


http://upcpri.blogspot.in/

RTI users’ victimization by Uttar Pradesh State Information Commission & state police: Cases of Murder of transparency & accountability and blatant violation of Human Rights in Uttar Pradesh : Request to initiate a probe and punish all offenders and help us bloom transparency & accountability to curb corruption in public life.

urvashi sharma
<rtimahilamanchup@gmail.com> Tue, Apr 29, 2014 at 8:28 AM
To: hgovup <hgovup@nic.in>, hgovup <hgovup@up.nic.in>, presidentofindia@rb.nic.in, pmosb@pmo.nic.in, uphrclko <uphrclko@yahoo.co.in>, cmup <cmup@nic.in>, cmup <cmup@up.nic.in>, csup@up.nic.in, dgp <dgp@up.nic.in>, dgpolice <dgpolice@sify.com>, uppcc <uppcc@up.nic.in>, uppcc-up <uppcc-up@nic.in>


By E-mail

To,
1- Sri Pranav Mukharjee,The President of India,New Delhi
< presidentofindia@rb.nic.in>,

2- Dr. Manmohan Singh,The Prime Minister of India,New Delhi "Hon'ble
Prime Miister of India Dr. Man Mohan Singh" <pmosb@pmo.nic.in>,

3- Sri B. L. Joshi
Governor-Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Government,Lucknow-226001
"hgovup" <hgovup@nic.in>, "hgovup" <hgovup@up.nic.in>,

4-Chaiman
U.P. State Human Rights Commission
TC 34 V ,1, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow
e mail: uphrclko@yahoo.coin

5-Sri Akhilesh Yadav
The Chief Minister
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"cmup" <cmup@nic.in>, "cmup" <cmup@up.nic.in>,

6- Sri Javed Usmani
The Chief Secretary
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"csup" csup@up.nic.in

7- DGP of Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Police Department
Lucknow "dgp" <dgp@up.nic.in>, "dgpolice"
<dgpolice@sify.com>, "uppcc" <uppcc@up.nic.in>, "uppcc-up"
<uppcc-up@nic.in>,


Sub.: RTI users' victimization by Uttar Pradesh State Information
Commission & state police: Cases of Murder of transparency &
accountability and blatant violation of Human Rights in Uttar Pradesh
: Request to initiate a probe and punish all offenders and help us
bloom transparency & accountability to curb corruption in public life.

I Got copy of FIR filed against RTI user Ashok Kumar Goyal, a sober
and fragile man in his sixties. I have personally seen Goyal, a RTI
user and so I have every reason to blame the deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh on inefficient and sycophant police
personnel like Kamla Kant Tripathi who despite being a sub-inspector
of U. P. Police that too in the presence of 5 other staff including
Information Commissioner Arvind Singh Bisht & his GUNNER failed to
handle a lone, unarmed senior citizen with a lean & thin built who
even failed to snatch the arm of Tripathiji. Imagine what would happen
if a group of hardcore criminals reach UPSIC with bad intention? How
will Kamla Kant Tripathi like police personnel and alike gunners
handle the situation then? So in my view they are not fit to be in
police force and should be shunted out of police force at once or
security of UPSIC or of place where they are deputed shall always be
at risk.

The text of FIR suggests that God has gifted Kamla Kant Tripathi the
most sensitive ears on earth and that's why he was able to hear the
discussion going on in the room behind one after another i.e. two
doors from the corridor where Tripathi was said to be standing. It May
be in national interest if Government of India should utilize this
quality of Kamla Kant Tripathi for spying against our enemy nations
and make him a master trainer for this art.

When Tripathi utters UPSIC as a court of law, I can't help
appreciating the biased attitude of Kamla Kant Tripathi which is the
same as of our information commissioners because when it comes to
victimize the info seekers, they all knew it that UPSIC is a court of
law but they forget it when info-seeker reminds this to them to invoke
it against PIOs. Our information commissioners have never used powers
of a court of law against any of the respondents. This doesn't mean
they have never used it against info-seekers. Many a times UPSIC had
sent contempt of court notices ( U/S 345 CrPc read with section 228
of IPC ) to info seekers. May be a fair inquiry would establish that
UPSIC was very much responsible for the recent murder of RTI user
Mangat Singh Tyagi of Hapur. Ashok Kumar Goyal , me or some other RTI
user may be the next target of corrupt system of
bureaucracy-politician-Info commissioner nexus of Uttar Pradesh.

Its very very surprising that on one hand Sub Inspector Kamla Kant
termed the acts of RTI user senior citizen Goyal as spreading terror
meaning thereby that Goyal happened to be a terrorist to him but said
Sub Inspector alongwith Gunner Avinash Tiwari & other staff including
Bishtji failed to overpower this unarmed senior citizen and
immediately hand him over to police. Unarmed Goyal not only easily
left the premises of UPSIC but reached his home also. Don't you agree
that such useless sub inspector and gunner be immediately removed
from government duties or else the precious lives of our learned
info-commissioners or citizens of U.P. are at great stake.

The incident took place at 2 PM but it took good 6 & a half Hours to
cover a short distance of two kilometers that too in the posh
Hazratganj area of state capital with ample transport facility. I bet
that in 6 & a half Hours I shall make a snail or tortoise reach
Hazratganj Thana from UPSIC but Kamlakant failed to do so. Now I can
easily understand the deteriorating law & order situation in Uttar
Pradesh. Earlier I was blaming it on Goondaraaj of Samajwaadi Party
but now I can understand that this is because of police personnel like
Kamlakant who are actually responsible for deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh. After elections Akhilesh led Government
should initiate a drive to investigate all those police personnel who
work at snail-pace err………… at Kamla-Kant-Tripathi-Pace and shunt them
out of job because they are doing no good to the system but eroding
our hard earned money, being paid to them as salary.

Casting a glance at medical examination report of Goyal, issued by
Civil Hospital of Lucknow makes me shiver to see the apathy of Police
department towards human rights of a common man. Many a times I have
seen the same police keeping hardcore criminals in hospitals just to
provide them ample time to dilute the wrath of law towards them but in
this case senior citizen Goyal, with blood pressure 174/96 and who was
referred to ICCU for expert opinion was not left at hospital but was
at Hazratganj police station lock-up and later in court of CJM
Lucknow. I don't have courage to comment on CJM court but I want to
bring this to your kind notice that CJM, though first passed order of
grant of bail to Goyal on 25-04-14 but later denied the same and Goyal
was sent to jail. Goyal could get bail on 26-04-14 that too after
active intervention of rights' activists and media personnel.
Shouldn't police station officer of Hazratganj police station be
punished for this blatant violation of Human rights of a senior
citizen.

I don't know about 7 criminal law amendment but am sure that though
none of the crimes as reported in FIR attract punishment of more than
7 years but despite this police arrested Goyal from his residence in
the middle of the night. Its surprising that police sub inspector
Kamla kant tripathi took 6 hours and 30 minutes to cover 2 Kms to file
FIR but Hazratganj police reached Goyal's residence at Scotland Yard's
pace. Nice example of appeasement of Political masters by U.P. police
for personal gains. Should't this be thoroughly probed as to why
police altogether acted differently? Yes this has to be, so please
get this probed.

Section 4(1)(d) of RTI act mandates every public authority to provide
reasons for its administrative or quasi judicial decisions to affected
persons but its strange that Bisht,( said to be) a noted journalist (
I doubt if he really was a journalist at heart) and ( said to be ) one
of the custodians of RTI act in U.P., Bisht himself fails to comply
this section of RTI act and adjourns hearings without providing any
reasons of such adjournments to the info-seeker who comes all the way
from far off place of U.P. that too at his/her own cost. Without any
specific reasons cited for such adjournments, I have every reason to
doubt that Arvind Singh Bisht announces these adjournments either for
playing his favorite online game or lottery or movie on internet or
may be for striking money deals with PIOs to let them go scot free
without providing corruption related information. Had Bishtji provided
reasons for adjournments, such apprehensions might not be there.

Though I know that Arvind Singh Bisht is a Kin to my Chief Minister
but I am risking my life to blame him as being a habitual late comer
to UPSIC and thus causing damage to the public resources, breaching
the contract of full day work despite taking full salary and
obstructing the government work ( read public work ) assigned to him.
Will any authority in India shall ever probe this on the basis of
location of his mobile on all working days at UPSIC? If not then its
better government should bring an ordinance to stop such
info-commissioners from holding hearings at UPSIC while paying all
parts of salary,perks and facilities to Info commissioners err……..
such relatives and near & dears of Government and help info-seekers
come out of illusion of there being a help named RTI act or UPSIC.
And also…….. for God sake stooooooop talking against corruption
instead start taking of nurturing corruption because this is all what
they are doing. Please stop having double,triple faces.

Of course there are some Info-commissioners at UPSIC who are doing
their job to the best of their abilities and I am raising my demand
that after retirement of Chief Information Commissioner pending
regular appointment, charge of Chief Information Commissioner should
be given to the most eligible Information Commissioner to be adjudged
on the basis of evaluation report of RTI cases handled by him. Such
evaluation should necessary be done by a third party.

Scanned documents related to above can be seen/downloaded from given weblink.
http://upcpri.blogspot.in/2014/04/rti-users-victimization-by-upsic.html

Please initiate a probe and punish all offenders as named above and
help us bloom transparency & accountability to curb corruption in
public life while ensuring protection of Human rights as well.

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


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By E-mail

To,
1- Sri Pranav Mukharjee,The President of India,New Delhi
< presidentofindia@rb.nic.in>,

2- Dr. Manmohan Singh,The Prime Minister of India,New Delhi "Hon'ble
Prime Miister of India Dr. Man Mohan Singh" <pmosb@pmo.nic.in>,

3- Sri B. L. Joshi
Governor-Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Government,Lucknow-226001
"hgovup" <hgovup@nic.in>, "hgovup" <hgovup@up.nic.in>,

4-Chaiman
U.P. State Human Rights Commission
TC 34 V ,1, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow
e mail: uphrclko@yahoo.coin

5-Sri Akhilesh Yadav
The Chief Minister
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"cmup" <cmup@nic.in>, "cmup" <cmup@up.nic.in>,

6- Sri Javed Usmani
The Chief Secretary
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"csup" csup@up.nic.in

7- DGP of Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Police Department
Lucknow "dgp" <dgp@up.nic.in>, "dgpolice"
<dgpolice@sify.com>, "uppcc" <uppcc@up.nic.in>, "uppcc-up"
<uppcc-up@nic.in>,


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Commission & state police: Cases of Murder of transparency &
accountability and blatant violation of Human Rights in Uttar Pradesh
: Request to initiate a probe and punish all offenders and help us
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I Got copy of FIR filed against RTI user Ashok Kumar Goyal, a sober
and fragile man in his sixties. I have personally seen Goyal, a RTI
user and so I have every reason to blame the deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh on inefficient and sycophant police
personnel like Kamla Kant Tripathi who despite being a sub-inspector
of U. P. Police that too in the presence of 5 other staff including
Information Commissioner Arvind Singh Bisht & his GUNNER failed to
handle a lone, unarmed senior citizen with a lean & thin built who
even failed to snatch the arm of Tripathiji. Imagine what would happen
if a group of hardcore criminals reach UPSIC with bad intention? How
will Kamla Kant Tripathi like police personnel and alike gunners
handle the situation then? So in my view they are not fit to be in
police force and should be shunted out of police force at once or
security of UPSIC or of place where they are deputed shall always be
at risk.

The text of FIR suggests that God has gifted Kamla Kant Tripathi the
most sensitive ears on earth and that's why he was able to hear the
discussion going on in the room behind one after another i.e. two
doors from the corridor where Tripathi was said to be standing. It May
be in national interest if Government of India should utilize this
quality of Kamla Kant Tripathi for spying against our enemy nations
and make him a master trainer for this art.

When Tripathi utters UPSIC as a court of law, I can't help
appreciating the biased attitude of Kamla Kant Tripathi which is the
same as of our information commissioners because when it comes to
victimize the info seekers, they all knew it that UPSIC is a court of
law but they forget it when info-seeker reminds this to them to invoke
it against PIOs. Our information commissioners have never used powers
of a court of law against any of the respondents. This doesn't mean
they have never used it against info-seekers. Many a times UPSIC had
sent contempt of court notices ( U/S 345 CrPc read with section 228
of IPC ) to info seekers. May be a fair inquiry would establish that
UPSIC was very much responsible for the recent murder of RTI user
Mangat Singh Tyagi of Hapur. Ashok Kumar Goyal , me or some other RTI
user may be the next target of corrupt system of
bureaucracy-politician-Info commissioner nexus of Uttar Pradesh.

Its very very surprising that on one hand Sub Inspector Kamla Kant
termed the acts of RTI user senior citizen Goyal as spreading terror
meaning thereby that Goyal happened to be a terrorist to him but said
Sub Inspector alongwith Gunner Avinash Tiwari & other staff including
Bishtji failed to overpower this unarmed senior citizen and
immediately hand him over to police. Unarmed Goyal not only easily
left the premises of UPSIC but reached his home also. Don't you agree
that such useless sub inspector and gunner be immediately removed
from government duties or else the precious lives of our learned
info-commissioners or citizens of U.P. are at great stake.

The incident took place at 2 PM but it took good 6 & a half Hours to
cover a short distance of two kilometers that too in the posh
Hazratganj area of state capital with ample transport facility. I bet
that in 6 & a half Hours I shall make a snail or tortoise reach
Hazratganj Thana from UPSIC but Kamlakant failed to do so. Now I can
easily understand the deteriorating law & order situation in Uttar
Pradesh. Earlier I was blaming it on Goondaraaj of Samajwaadi Party
but now I can understand that this is because of police personnel like
Kamlakant who are actually responsible for deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh. After elections Akhilesh led Government
should initiate a drive to investigate all those police personnel who
work at snail-pace err………… at Kamla-Kant-Tripathi-Pace and shunt them
out of job because they are doing no good to the system but eroding
our hard earned money, being paid to them as salary.

Casting a glance at medical examination report of Goyal, issued by
Civil Hospital of Lucknow makes me shiver to see the apathy of Police
department towards human rights of a common man. Many a times I have
seen the same police keeping hardcore criminals in hospitals just to
provide them ample time to dilute the wrath of law towards them but in
this case senior citizen Goyal, with blood pressure 174/96 and who was
referred to ICCU for expert opinion was not left at hospital but was
at Hazratganj police station lock-up and later in court of CJM
Lucknow. I don't have courage to comment on CJM court but I want to
bring this to your kind notice that CJM, though first passed order of
grant of bail to Goyal on 25-04-14 but later denied the same and Goyal
was sent to jail. Goyal could get bail on 26-04-14 that too after
active intervention of rights' activists and media personnel.
Shouldn't police station officer of Hazratganj police station be
punished for this blatant violation of Human rights of a senior
citizen.

I don't know about 7 criminal law amendment but am sure that though
none of the crimes as reported in FIR attract punishment of more than
7 years but despite this police arrested Goyal from his residence in
the middle of the night. Its surprising that police sub inspector
Kamla kant tripathi took 6 hours and 30 minutes to cover 2 Kms to file
FIR but Hazratganj police reached Goyal's residence at Scotland Yard's
pace. Nice example of appeasement of Political masters by U.P. police
for personal gains. Should't this be thoroughly probed as to why
police altogether acted differently? Yes this has to be, so please
get this probed.

Section 4(1)(d) of RTI act mandates every public authority to provide
reasons for its administrative or quasi judicial decisions to affected
persons but its strange that Bisht,( said to be) a noted journalist (
I doubt if he really was a journalist at heart) and ( said to be ) one
of the custodians of RTI act in U.P., Bisht himself fails to comply
this section of RTI act and adjourns hearings without providing any
reasons of such adjournments to the info-seeker who comes all the way
from far off place of U.P. that too at his/her own cost. Without any
specific reasons cited for such adjournments, I have every reason to
doubt that Arvind Singh Bisht announces these adjournments either for
playing his favorite online game or lottery or movie on internet or
may be for striking money deals with PIOs to let them go scot free
without providing corruption related information. Had Bishtji provided
reasons for adjournments, such apprehensions might not be there.

Though I know that Arvind Singh Bisht is a Kin to my Chief Minister
but I am risking my life to blame him as being a habitual late comer
to UPSIC and thus causing damage to the public resources, breaching
the contract of full day work despite taking full salary and
obstructing the government work ( read public work ) assigned to him.
Will any authority in India shall ever probe this on the basis of
location of his mobile on all working days at UPSIC? If not then its
better government should bring an ordinance to stop such
info-commissioners from holding hearings at UPSIC while paying all
parts of salary,perks and facilities to Info commissioners err……..
such relatives and near & dears of Government and help info-seekers
come out of illusion of there being a help named RTI act or UPSIC.
And also…….. for God sake stooooooop talking against corruption
instead start taking of nurturing corruption because this is all what
they are doing. Please stop having double,triple faces.

Of course there are some Info-commissioners at UPSIC who are doing
their job to the best of their abilities and I am raising my demand
that after retirement of Chief Information Commissioner pending
regular appointment, charge of Chief Information Commissioner should
be given to the most eligible Information Commissioner to be adjudged
on the basis of evaluation report of RTI cases handled by him. Such
evaluation should necessary be done by a third party.

Scanned documents related to above can be seen/downloaded from given weblink.
http://upcpri.blogspot.in/2014/04/rti-users-victimization-by-upsic.html

Please initiate a probe and punish all offenders as named above and
help us bloom transparency & accountability to curb corruption in
public life while ensuring protection of Human rights as well.

--
-Sincerely Yours,

Urvashi Sharma
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


http://upcpri.blogspot.in/

RTI users’ victimization by Uttar Pradesh State Information Commission : Request to initiate a probe and punish all offenders and help us bloom transparency & accountability to curb corruption in public life.

---------- Forwarded message ----------
From: urvashi sharma <rtimahilamanchup@gmail.com>
Date: Tue, 29 Apr 2014 01:12:37 +0530
Subject: RTI users' victimization by Uttar Pradesh State Information
Commission : Request to initiate a probe and punish all offenders and
help us bloom transparency & accountability to curb corruption in
public life.
To: hgovup <hgovup@nic.in>, hgovup <hgovup@up.nic.in>
Cc: presidentofindia@rb.nic.in, pmosb@pmo.nic.in, cmup <cmup@nic.in>,
cmup <cmup@up.nic.in>, csup@up.nic.in, dgp <dgp@up.nic.in>, dgpolice
<dgpolice@sify.com>, uppcc <uppcc@up.nic.in>, uppcc-up
<uppcc-up@nic.in>

By E-mail

To,
Sri B. L. Joshi
Governor-Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Government,Lucknow-226001
"hgovup" <hgovup@nic.in>, "hgovup" <hgovup@up.nic.in>,

Sub.: RTI users' victimization by Uttar Pradesh State Information
Commission : Request to initiate a probe and punish all offenders and
help us bloom transparency & accountability to curb corruption in
public life.

I Got copy of FIR filed against RTI user Ashok Kumar Goyal, a sober
and fragile man in his sixties. I have personally seen Goyal, a RTI
user and so I have every reason to blame the deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh on inefficient and sycophant police
personnel like Kamla Kant Tripathi who despite being a sub-inspector
of U. P. Police that too in the presence of 5 other staff including
Information Commissioner Arvind Singh Bisht & his GUNNER failed to
handle a lone, unarmed senior citizen with a lean & thin built who
even failed to snatch the arm of Tripathiji. Imagine what would happen
if a group of hardcore criminals reach UPSIC with bad intention? How
will Kamla Kant Tripathi like police personnel and alike gunners
handle the situation then? So in my view they are not fit to be in
police force and should be shunted out of police force at once or
security of UPSIC or of place where they are deputed shall always be
at risk.

The text of FIR suggests that God has gifted Kamla Kant Tripathi the
most sensitive ears on earth and that's why he was able to hear the
discussion going on in the room behind one after another i.e. two
doors from the corridor where Tripathi was said to be standing. It May
be in national interest if Government of India should utilize this
quality of Kamla Kant Tripathi for spying against our enemy nations
and make him a master trainer for this art.

When Tripathi utters UPSIC as a court of law, I can't help
appreciating the biased attitude of Kamla Kant Tripathi which is the
same as of our information commissioners because when it comes to
victimize the info seekers, they all knew it that UPSIC is a court of
law but they forget it when info-seeker reminds this to them to invoke
it against PIOs. Our information commissioners have never used powers
of a court of law against any of the respondents. This doesn't mean
they have never used it against info-seekers. Many a times UPSIC had
sent contempt of court notices ( U/S 345 CrPc read with section 228
of IPC ) to info seekers. May be a fair inquiry would establish that
UPSIC was very much responsible for the recent murder of RTI user
Mangat Singh Tyagi of Hapur. Ashok Kumar Goyal , me or some other RTI
user may be the next target of corrupt system of
bureaucracy-politician-Info commissioner nexus of Uttar Pradesh.

Its very very surprising that on one hand Sub Inspector Kamla Kant
termed the acts of RTI user senior citizen Goyal as spreading terror
meaning thereby that Goyal happened to be a terrorist to him but said
Sub Inspector alongwith Gunner Avinash Tiwari & other staff including
Bishtji failed to overpower this unarmed senior citizen and
immediately hand him over to police. Unarmed Goyal not only easily
left the premises of UPSIC but reached his home also. Don't you agree
that such useless sub inspector and gunner be immediately removed
from government duties or else the precious lives of our learned
info-commissioners or citizens of U.P. are at great stake.

The incident took place at 2 PM but it took good 6 & a half Hours to
cover a short distance of two kilometers that too in the posh
Hazratganj area of state capital with ample transport facility. I bet
that in 6 & a half Hours I shall make a snail or tortoise reach
Hazratganj Thana from UPSIC but Kamlakant failed to do so. Now I can
easily understand the deteriorating law & order situation in Uttar
Pradesh. Earlier I was blaming it on Goondaraaj of Samajwaadi Party
but now I can understand that this is because of police personnel like
Kamlakant who are actually responsible for deteriorating law & order
situation in Uttar Pradesh. After elections Akhilesh led Government
should initiate a drive to investigate all those police personnel who
work at snail-pace err………… at Kamla-Kant-Tripathi-Pace and shunt them
out of job because they are doing no good to the system but eroding
our hard earned money, being paid to them as salary.

Section 4(1)(d) of RTI act mandates every public authority to provide
reasons for its administrative or quasi judicial decisions to affected
persons but its strange that Bisht,( said to be) a noted journalist (
I doubt if he really was a journalist at heart) and ( said to be ) one
of the custodians of RTI act in U.P., Bisht himself fails to comply
this section of RTI act and adjourns hearings without providing any
reasons of such adjournments to the info-seeker who comes all the way
from far off place of U.P. that too at his/her own cost. Without any
specific reasons cited for such adjournments, I have every reason to
doubt that Arvind Singh Bisht announces these adjournments either for
playing his favorite online game or lottery or movie on internet or
may be for striking money deals with PIOs to let them go scot free
without providing corruption related information. Had Bishtji provided
reasons for adjournments, such apprehensions might not be there.

Though I know that Arvind Singh Bisht is a Kin to my Chief Minister
but I am risking my life to blame him as being a habitual late comer
to UPSIC and thus causing damage to the public resources, breaching
the contract of full day work despite taking full salary and
obstructing the government work ( read public work ) assigned to him.
Will any authority in India shall ever probe this on the basis of
location of his mobile on all working days at UPSIC? If not then its
better government should bring an ordinance to stop such
info-commissioners from holding hearings at UPSIC while paying all
parts of salary,perks and facilities to Info commissioners err……..
such relatives and near & dears of Government and help info-seekers
come out of illusion of there being a help named RTI act or UPSIC.
And also…….. for God sake stooooooop talking against corruption
instead start taking of nurturing corruption because this is all what
they are doing. Please stop having double,triple faces.

Of course there are some Info-commissioners at UPSIC who are doing
their job to the best of their abilities and I am raising my demand
that after retirement of Chief Information Commissioner pending
regular appointment, charge of Chief Information Commissioner should
be given to the most eligible Information Commissioner to be adjudged
on the basis of evaluation report of RTI cases handled by him. Such
evaluation should necessary be done by a third party.

Scanned documents related to above can be seen/downloaded from given weblink.
http://upcpri.blogspot.in/2014/04/rti-users-victimization-by-upsic.html

Please initiate a probe and punish all offenders as named above and
help us bloom transparency & accountability to curb corruption in
public life.

Copy By e-mail to take appropriate action at their end to :
1- Sri Pranav Mukharjee,The President of India,New Delhi
< presidentofindia@rb.nic.in>,

2- Dr. Manmohan Singh,The Prime Minister of India,New Delhi "Hon'ble
Prime Miister of India Dr. Man Mohan Singh" <pmosb@pmo.nic.in>,

3- Sri Akhilesh Yadav
The Chief Minister
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"cmup" <cmup@nic.in>, "cmup" <cmup@up.nic.in>,

4- Sri Javed Usmani
The Chief Secretary
Uttar Pradesh Government
Lucknow,Uttar Pradesh,India-226001
"csup" csup@up.nic.in

5- DGP of Uttar Pradesh
Uttar Pradesh Police Department
Lucknow "dgp" <dgp@up.nic.in>, "dgpolice"
<dgpolice@sify.com>, "uppcc" <uppcc@up.nic.in>, "uppcc-up"
<uppcc-up@nic.in>,


--
- Urvashi Sharma
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838


http://upcpri.blogspot.in/



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- Urvashi Sharma
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Helpline Against Corruption 9455553838


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if corruption had made akhilesh yadav's police too weak to handle law & order

--
- Urvashi Sharma
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Saturday, April 26, 2014

shouldn't uttar pradesh information commissioner arvind singh bisht be awarded some bravery award for his show of might to an info seeker

shouldn't uttar pradesh information commissioner arvind singh bisht be
awarded some bravery award for his show of might to an info seeker

--
- Urvashi Sharma
Contact 9369613513
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http://yaishwaryaj-seva-sansthan.hpage.co.in/

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Amazing : Journalist Arvind Singh Bisht is now inhuman & autocratic information Commissioner of Uttar Pradesh State Information Commission

--
- Urvashi Sharma
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सूचना आयुक्त की साजिश में फंसे आरटीआई कार्यकर्ता अशोक गोयल

http://www.jansattaexpress.net/print/6076.html


सूचना आयुक्त की साजिश में फंसे आरटीआई कार्यकर्ता अशोक गोयल

सूबों में सूचना आयुक्तों का काम अब केवल सूचना देना नहीं रह गया है
अब ये सूचना आयुक्त लोगों को सूचना मांगने पर सरकारी गुंडा बन जा रहे हैं
और लोगों पर कहर

सूचना आयुक्त की साजिश में फंसे आरटीआई कार्यकर्ता अशोक गोयल


सूबों में सूचना आयुक्तों का काम अब केवल सूचना देना नहीं रह गया है अब
ये सूचना आयुक्त लोगों को सूचना मांगने पर सरकारी गुंडा बन जा रहे हैं और
लोगों पर कहर बरपा रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि अभी हाल में ही मुलायम
सरकार में शामिल एक सूचना आयुक्त ने अपनी ताकत के बल पर लखनऊ के हजरतगंज
कोतवाली में गुरुवार को एक आरटीआई कार्यकर्ता के खिलाफ सरकारी कार्य में
बाधा डालने व मारपीट करने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया है। वैसे पुलिस
के मुताबिक आरटीआई कार्यकर्ता अशोक कुमार गोयल ने सूचना कार्यालय में
गुरुवार को एक वरिष्ठ अधिकारी से अभद्रता की। वहीं अशोक का कहना है कि एक
तालाब के विषय में आरटीआई दाखिल की थी, जिसकी सूचना नहीं दी जा रही है।
गुरुवार को इसी आरटीआई को लेकर उनकी कार्यालय देर से आए एक अधिकारी से
बहस हुई थी। पुलिस ने दारोगा कमलाकांत त्रिपाठी की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज
की है।
एक सूत्र ने बताया कि अशोक गोयल को फंसाने में एक सूचना आयुक्त का हाथ है
जो अभी कुछ दिनों पहले ही शपथ लिए हैं। उन्हें मुलायम सिंह का काफी करीबी
माना जाता है। इसलिए वे अपनी ताकत को खूब आजमा रहे हैं पर वे नहीं जानते
कि चुनाव बाद ही सपा का भंडा फूटने वाला है और सरकार भी अपने औकात में
आने वाली है।
--
- Urvashi Sharma
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Friday, April 25, 2014

In Akhilesh’s Uttar Pradesh Using RTI is a CRIME : Info Commissioner gets RTI user landed in JAIL for demanding disposal of case as per act

Wanna feel the heat of Akhilesh's SAMAJWAAD, just File a corruption
related RTI concerning any of the departments being handled by U.P.
Information Commissioner Arvind Singh Bisht, expect and press for
disposal of case as per RTI act and you shall surely taste the food of
Lucknow jail. All this is sure to happen because Arvind Singh Bisht is
no ordinary person because he is a kin of U.P.C.M. Akhilesh Yadav and
also all corners of system are there ready to concoct a cock n bull
story as per whims & fancies of their corrupt masters.

Today, CJM Lucknow denied bail to RTI user Ashok Kumar Goyal and sent
him to jail.

Ashok kumar Goyal's only fault : He sought information from Municipal
Corporation of Lucknow and wanted his case no. S1-4418/C/2013 to be
disposed in accordance with provisions of RTI act 2005. I think that
in today's ULTA-RAAJ of Uttar Pradesh Ashok Goyal deserved it because
eroding the lands of ponds has become a constitutional right like
thing of (corrupt) authorities and anybody questioning their (corrupt)
acts and poking his nose to rectify the system has to meet with the
same fate.

This is noteworthy to mention that the same IC is a habitual latecomer
and never attends the office for full time.


After murders of RTI users in U.P. , this is something new from U.P.
that I wanted to share with you all.

Since there are cameras installed in UPSIC so I am sure that unless
and until UPSIC bows down to the lowest level and destroys the CCTV
record, truth shall surely prevail but what about the harassment of
RTI user and unethical approach of Information commissioner to
implicate a RTI user falsely?

Sending this mail to you all with the demand to flood mailbox of
governor of UP for a CBI inquiry of recent cases related to
harassment/murders of RTI users in Uttar Pradesh.

Please help and don't let U.P. decay because a corruption free India
cannot be imagined without a corruption free U.P.


--
- Urvashi Sharma
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
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In Akhilesh’s Uttar Pradesh Using RTI is a CRIME : Info Commissioner gets RTI user landed in JAIL for demanding disposal of case as per act

Wanna feel the heat of Akhilesh's SAMAJWAAD, just File a corruption related RTI concerning any of the departments being handled by U.P. Information Commissioner Arvind Singh Bisht, expect and press for disposal of case as per RTI act and you shall surely taste the food of Lucknow jail. All this is sure to happen because Arvind Singh Bisht is no ordinary person because he is a kin of U.P.C.M. Akhilesh Yadav and also all corners of system are there ready to concoct a cock n bull story as per whims & fancies of their corrupt masters.

Today, CJM Lucknow denied bail to RTI user Ashok Kumar Goyal and sent him to jail.

Ashok kumar Goyal's only fault : He sought information from Municipal Corporation of Lucknow and wanted his case no. S1-4418/C/2013 to be disposed in accordance with provisions of RTI act 2005. I think that in today's ULTA-RAAJ of Uttar Pradesh Ashok Goyal deserved it because eroding the lands of ponds has become a constitutional right like thing of (corrupt) authorities and anybody questioning their (corrupt) acts and poking his nose to rectify the system has to meet with the same fate.

This is noteworthy to mention that the same IC is a habitual latecomer and never attends the office for full time.


After murders of RTI users in U.P. , this is something new from U.P. that I wanted to share with you all.

Since there are cameras installed in UPSIC so I am sure that unless and until UPSIC bows down to the lowest level and destroys the CCTV record, truth shall surely prevail but what about the harassment of RTI user and unethical approach of Information commissioner to implicate a RTI user falsely?

Sending this mail to you all with the demand to flood mailbox of governor of UP for a CBI inquiry of recent cases related to harassment/murders of RTI users in Uttar Pradesh.

Please help and don't let U.P. decay because a corruption free India cannot be imagined without a corruption free U.P.

Thursday, April 24, 2014

Samajwad redifined in Uttar Pradesh

http://www.niticentral.com/hindi/2014/04/24/meet-the-fake-poster-boy-of-sp-215614.html

Home » Hindi » Hindi News » सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
Vivek Shukla24 Apr 2014

SP | Poster | boy | सपा | पोस्टर
सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
क्या लखनऊ से सपा के लोकसभा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा ने कभी
आईआईएम,अहमदाबाद में पढ़ाया है? अभिषेक मिश्रा खुद को आईआईएम अहमदाबाद का
भूतपूर्व प्रोफेसर बताते आये हैं। पर हकीकत में अभिषेक मिश्रा आईआईएम
अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि
कैसे अभिषेक मिश्रा सरीखे व्यक्ति जनता के समक्ष झूठे तथ्य रखकर अपने आप
को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं और कभी विधान सभा पहुंच जाते हैं तो कभी लोक सभा
के प्रत्याशी बनकर वोट मांगते दिखाई देते हैं।
पत्रकार और आईटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार, एक आरटीआई के जवाब
में आईआईएम अहमदाबाद से प्राप्त प्रपत्रों के अनुसार अभिषेक मिश्रा 27
फरवरी 2007 से 01 अक्टूबर 2009 तक की अल्प अवधि के लिए आईआईएम अहमदाबाद
में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं न कि प्रोफेसर। अब सवाल यह है कि जब
अभिषेक मिश्रा आईआईएम अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं तो लखनऊ
में लोकसभा चुनाव में अभिषेक मिश्रा को प्रोफेसर बताने वाले पोस्टर,
बैनर, पर्चे बांटना या बंटवाना क्या जनता के साथ की जा रही धोखाधड़ी नहीं
है? क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को अयोग्य घोषित कर
उनके खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?
उर्वशी शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा द्वारा दायर
आरटीआई से प्राप्त प्रपत्रों से अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री पर भी
संशय उत्पन्न हो रहा है। आईआईएम अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश शासन के पास
अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री नहीं है और चुनाव आयोग ने अभी तक
हमारी आरटीआई का जवाब नहीं दिया है।
अभिषेक मिश्रा के सम्बन्ध में आईआईएम अहमदाबाद में दायर आरटीआई द्वारा
प्राप्त प्रपत्रों से आईआईएम की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह भी लग
रहे हैं जो आईआईएम और अभिषेक मिश्रा के मध्य दुरभिसन्धि होने की पुष्टि
कर रहे है।

--
- Urvashi Sharma
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True Lies of Abhishek Mishra , Uttar Pradesh Minister & Lok Sabha candidate of Samajwadi Party for Lucknow seat

http://www.niticentral.com/hindi/2014/04/24/meet-the-fake-poster-boy-of-sp-215614.html

Home » Hindi » Hindi News » सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
Vivek Shukla24 Apr 2014

SP | Poster | boy | सपा | पोस्टर
सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
क्या लखनऊ से सपा के लोकसभा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा ने कभी
आईआईएम,अहमदाबाद में पढ़ाया है? अभिषेक मिश्रा खुद को आईआईएम अहमदाबाद का
भूतपूर्व प्रोफेसर बताते आये हैं। पर हकीकत में अभिषेक मिश्रा आईआईएम
अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि
कैसे अभिषेक मिश्रा सरीखे व्यक्ति जनता के समक्ष झूठे तथ्य रखकर अपने आप
को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं और कभी विधान सभा पहुंच जाते हैं तो कभी लोक सभा
के प्रत्याशी बनकर वोट मांगते दिखाई देते हैं।
पत्रकार और आईटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार, एक आरटीआई के जवाब
में आईआईएम अहमदाबाद से प्राप्त प्रपत्रों के अनुसार अभिषेक मिश्रा 27
फरवरी 2007 से 01 अक्टूबर 2009 तक की अल्प अवधि के लिए आईआईएम अहमदाबाद
में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं न कि प्रोफेसर। अब सवाल यह है कि जब
अभिषेक मिश्रा आईआईएम अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं तो लखनऊ
में लोकसभा चुनाव में अभिषेक मिश्रा को प्रोफेसर बताने वाले पोस्टर,
बैनर, पर्चे बांटना या बंटवाना क्या जनता के साथ की जा रही धोखाधड़ी नहीं
है? क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को अयोग्य घोषित कर
उनके खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?
उर्वशी शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा द्वारा दायर
आरटीआई से प्राप्त प्रपत्रों से अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री पर भी
संशय उत्पन्न हो रहा है। आईआईएम अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश शासन के पास
अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री नहीं है और चुनाव आयोग ने अभी तक
हमारी आरटीआई का जवाब नहीं दिया है।
अभिषेक मिश्रा के सम्बन्ध में आईआईएम अहमदाबाद में दायर आरटीआई द्वारा
प्राप्त प्रपत्रों से आईआईएम की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह भी लग
रहे हैं जो आईआईएम और अभिषेक मिश्रा के मध्य दुरभिसन्धि होने की पुष्टि
कर रहे है।

--
- Urvashi Sharma
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://yaishwaryaj-seva-sansthan.hpage.co.in/

http://upcpri.blogspot.in/

सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला

http://www.niticentral.com/hindi/2014/04/24/meet-the-fake-poster-boy-of-sp-215614.html

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सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
Vivek Shukla24 Apr 2014

SP | Poster | boy | सपा | पोस्टर
सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला
क्या लखनऊ से सपा के लोकसभा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा ने कभी
आईआईएम,अहमदाबाद में पढ़ाया है? अभिषेक मिश्रा खुद को आईआईएम अहमदाबाद का
भूतपूर्व प्रोफेसर बताते आये हैं। पर हकीकत में अभिषेक मिश्रा आईआईएम
अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि
कैसे अभिषेक मिश्रा सरीखे व्यक्ति जनता के समक्ष झूठे तथ्य रखकर अपने आप
को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं और कभी विधान सभा पहुंच जाते हैं तो कभी लोक सभा
के प्रत्याशी बनकर वोट मांगते दिखाई देते हैं।
पत्रकार और आईटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार, एक आरटीआई के जवाब
में आईआईएम अहमदाबाद से प्राप्त प्रपत्रों के अनुसार अभिषेक मिश्रा 27
फरवरी 2007 से 01 अक्टूबर 2009 तक की अल्प अवधि के लिए आईआईएम अहमदाबाद
में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं न कि प्रोफेसर। अब सवाल यह है कि जब
अभिषेक मिश्रा आईआईएम अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं तो लखनऊ
में लोकसभा चुनाव में अभिषेक मिश्रा को प्रोफेसर बताने वाले पोस्टर,
बैनर, पर्चे बांटना या बंटवाना क्या जनता के साथ की जा रही धोखाधड़ी नहीं
है? क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को अयोग्य घोषित कर
उनके खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?
उर्वशी शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा द्वारा दायर
आरटीआई से प्राप्त प्रपत्रों से अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री पर भी
संशय उत्पन्न हो रहा है। आईआईएम अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश शासन के पास
अभिषेक मिश्रा की डॉक्ट्रेट डिग्री नहीं है और चुनाव आयोग ने अभी तक
हमारी आरटीआई का जवाब नहीं दिया है।
अभिषेक मिश्रा के सम्बन्ध में आईआईएम अहमदाबाद में दायर आरटीआई द्वारा
प्राप्त प्रपत्रों से आईआईएम की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह भी लग
रहे हैं जो आईआईएम और अभिषेक मिश्रा के मध्य दुरभिसन्धि होने की पुष्टि
कर रहे है।

--
- Urvashi Sharma
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://yaishwaryaj-seva-sansthan.hpage.co.in/

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सपा का पोस्टर बॉय फटा पोस्टर निकला

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http://upcpri.blogspot.in/2014/04/blog-post.html

Tuesday, April 22, 2014

SP candidate from UP capital is a liar, reveals RTI. Contrary to prevailing claims, Abhishek Mishra had never been a PROFESSOR at IIMA. RTI casts doubts on Mishra holding a doctorate degree. Is election commission listening? आखिर लखनऊ से झूंठ क्यों बोल रहे हैं सपा प्रत्याशी ? कभी प्रोफेसर नहीं रहे अभिषेक मिश्रा ! अभिषेक मिश्रा की डॉक्टरेट डिग्री पर भी संशय ! क्या यह लखनऊ की जनता के साथ लखनऊ से सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा द्वारा की गयी धोखाधड़ी नहीं है और क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को अयोग्य घोषित कर मिश्रा के खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?

SP candidate from UP capital is a liar, reveals RTI. Contrary to prevailing claims, Abhishek Mishra had never been a PROFESSOR at IIMA. RTI casts doubts on Mishra holding a doctorate degree. Is election commission listening? आखिर लखनऊ से झूंठ क्यों बोल रहे हैं सपा प्रत्याशी ? कभी प्रोफेसर नहीं रहे अभिषेक मिश्रा ! अभिषेक मिश्रा की डॉक्टरेट डिग्री पर भी संशय ! क्या यह लखनऊ की जनता के साथ लखनऊ से सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा द्वारा की गयी धोखाधड़ी नहीं है और क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को
अयोग्य घोषित कर मिश्रा के खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?



लखनऊ में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी पूरे उफान पर है l लखनऊ से सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा के प्रोफेसर बाले पोस्टर,बैनर,पर्चे यत्र-तत्र-सर्वत्र दिखाई दे रहे हैं l अभिषेक मिश्रा स्वयं को देश की प्रतिष्ठित संस्था आई आई एम अहमदाबाद का पूर्व प्रोफेसर बताते आये हैं पर हकीकत में महाशय अभिषेक मिश्रा आई आई एम अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं l ऐसे में बड़ा सबाल यह है कि
जिस देश में झूठ बोलकर चतुर्थ श्रेणी तक की नौकरी पाने बाले को न केवल अयोग्य माना जाता है बल्कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जाता है आखिर कैसे उसी देश में अभिषेक मिश्रा सरीखे व्यक्ति जनता के समक्ष असत्य तथ्य तक रखकर अपने आप को बढ़ा - चढ़ाकर दिखाते हैं और कभी विधान सभा पहुंच जाते हैं तो कभी लोक सभा के प्रत्याशी बनकर वोट मांगते दिखाई देते हैं और सारा सिस्टम
मूकदर्शक बना मात्र तमाशा देखता रहता है पर करता कुछ भी नहीं है l


आरटीआई में आई आई एम अहमदाबाद से प्राप्त प्रपत्रों के अनुसार अभिषेक मिश्रा 27 फरवरी 2007 से 01 अक्टूबर 2009 तक की अल्प अवधि के लिए आई आई एम अहमदाबाद में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे हैं न कि प्रोफेसर l अब सबाल यह है कि जब हकीकत में अभिषेक मिश्रा आई आई एम अहमदाबाद में कभी प्रोफेसर रहे ही नहीं हैं तो लखनऊ में लोकसभा चुनाव में अभिषेक मिश्रा को प्रोफेसर बताने बाले पोस्टर,बैनर,पर्चे
बांटना या बंटवाना क्या जनता के साथ की जा रही धोखाधड़ी नहीं है ? क्या यह लखनऊ की जनता के साथ लखनऊ से सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा द्वारा की गयी धोखाधड़ी नहीं है और क्या चुनाव आयोग को इस मामले में अभिषेक मिश्रा को अयोग्य घोषित कर मिश्रा के खिलाफ धोखाधड़ी का आपराधिक मामला दर्ज नहीं कराना चाहिए?


आई आई एम अहमदाबाद, उत्तर प्रदेश शासन और चुनाव आयोग में सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा और मेरी आरटीआई में प्राप्त प्रपत्रों से अभिषेक मिश्रा की डॉक्टरेट डिग्री पर भी संशय उत्पन्न हो रहा है l आई आई एम अहमदाबाद और उत्तर प्रदेश शासन के पास अभिषेक मिश्रा की डॉक्टरेट डिग्री नहीं है और चुनाव आयोग ने अभी तक आरटीआई का जवाव नहीं दिया है l

अभिषेक मिश्रा के सम्बन्ध में आई आई एम अहमदाबाद में सामाजिक कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा और मेरी आरटीआई में प्राप्त प्रपत्रों से आई आई एम अहमदाबाद की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह भी लग रहे हैं जो आई आई एम अहमदाबाद और अभिषेक मिश्रा के मध्य दुरभिसन्धि होने की पुष्टि कर रहे है l

आरटीआई में प्राप्त प्रपत्रों को डाउनलोड करने के लिए इन दो वेबलिंक्स पर क्लिक करें l
http://upcpri.blogspot.in/2014/04/rti-by-urvashi-sharma-reveals-abhishek.html
http://upcpri.blogspot.in/2014/04/rti-by-activist-sanjay-sharma-casts.html

उर्वशी शर्मा
मोबाइल- 9369613513