Wednesday, April 29, 2015

सूचना आयोगों में सिटीज़न चार्टर लागू कर सूचना आयुक्तों के कार्यों एवं आचरण के मानक निर्धारित करने और आयोगों में मामलों के पंजीकरण और निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित करने की माँग

http://upcpri.blogspot.in/2015/04/blog-post_29.html

Press Note.18-04-15."लोकतंत्र रक्षक है आरटीआई एक्टिविस्ट". "सुशासन की
मास्टर-चाभी है आरटीआई." "आरटीआई कमजोर तो लोकतंत्र कमजोर." "इन्फो
डिलेड इस इन्फो डिनाइड." "आरटीआई किल्स टू."..... यह बानगी है उन नारों
की जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देश भर केसे आए आरटीआई
कार्यकर्ताओं ने अपने संबोधनों में कहे. मौका था सामाजिक संगठन
येश्वर्याज सेवा संस्थान की ओर से आयोजित किए जाने बाले 'विष्णु दत्त
मिश्रा स्मारक आरटीआई रत्न सम्मान समारोह 2015' और 'आरटीआई एक्ट संरक्षक
के दायित्वों के निर्वहन में सूचना आयोगों की प्रभावकारिता' विषयक
राष्ट्रीय विचार गोष्ठी का जिसमें देश के 29 सूचना आयोगों के
संगठन,परिश्रम,क्षमता पर विस्तृत विचार विमर्श किया गया और आयोगों के
कार्यों और मूल्यांकन कर रिपोर्ट कार्ड बनाया गया. इस मौके पर आरटीआई
कार्यकर्ताओं द्वारा सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने हेतु
सुझाव दिए गये जिनमें से साझे सुझाव इस संस्था द्वारा देश के सभी 29
सूचना आयोगों को प्रेषित किए जाएँगे.


देशवासियों के 15 वर्षों के कठिन प्रयासों से मिला आरटीआई एक्ट लागू
होने के दसवें वर्ष में ही अपनी धार खोता नज़र आ रहा है ऐसे में यह सबाल
उठना लाजिमी है कि आख़िर पारदर्शिता के इस औजार के संरक्षक सूचना आयोगों
ने भारत में आरटीआई के सिस्टम को स्थापित करने और उसे मजबूती देने की
दिशा में क्या काम किया है. यह सबाल पहले भी उठता रहा है और इस बार इस
सबाल को उठाया है कार्यक्रम में भारत के विभिन्न राज्यों से आए देश भर के
सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राय
उमानाथ बाली प्रेक्षागृह के जयशंकर प्रसाद सभागार में.


वक्ताओं द्वारा सेमिनार में आरटीआई के परिपेक्ष में निम्नलिखित विचार रखे गये :
"लोकप्रियता की बात करें तो भारत के संविधान के बाद आरटीआई एक्ट सबसे
अधिक लोकप्रिय है . आरटीआई एक्टिविस्ट भी मानवाधिकार कार्यकर्ता ही हैं.
पर अब तक आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमलों के 250 से अधिक मामले प्रकाश में
आ चुके हैं जिनमे से 40 मामले हत्या के है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि
विहिसिल-ब्लोअर क़ानून के बाद भी आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या का
सिलसिला रुक नहीं रहा है जो सरकार की पारदर्शिता और सुशासन के प्रति
वचनबद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है. देश के राजनैतिक दल स्वयं को
आरटीआई से बाहर रखने के लिए हर संभव चालें चल रहे हैं. आरटीआई आवेदनों की
संख्या में बढ़ोत्तरी का कम होना यह बताता है कि नागरिकों में सरकार के
प्रति विश्वास में कमी आ रही है. प्रतिभागी लोकतंत्र की स्थापना के लिए
प्रशासनिक विशेषाधिकारों पर नियंत्रण आवश्यक है पर आरटीआई को कमजोर करना
लोकतंत्र को कमजोर करना है. आज सरकारें पारदर्शिता के प्रति बचनबद्ध नही
रह गयीं हैं और हैं लोकतांत्रिक प्रशासन की स्थापना और समाज के वंचित
वर्ग के हित सुरक्षित रखने के इस सबसे प्रभावी माध्यम की धार को कुन्द
करने में लगीं हैं. महज 0.4प्रतिशत भारतीयों द्वारा प्रयोग किए जाने बाले
इस एक्ट ने सरकारों की चूलें हिला दीं तो सोचिए क्या होगा जब भारत की
अधिसंख्य आवादी इस एक्ट का प्रयोग कर अपने अधिकारों की माँग करेगी, शायद
इसीलिए सरकारें इस एक्ट के प्रचार प्रसार के प्रति सोची-समझी रणनीति के
तहत नितांत उदासीन रवैया अपनाए हुई हैं."


आरटीआई आवेदनों की संख्या का रिकॉर्ड रखने का कोई भी सरकारी तंत्र नहीं
है और इसीलिए आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले के मामलों की सही संख्या भी
मालूम नहीं है.इस पर क्षोभ प्रगट करते हुए वक्ताओं ने माँग रखी कि आरटीआई
एक्टिविस्टो द्वारा अपने उत्पीड़न के संबंध में दी गयी शिकायतों पर
तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर कार्यवाही होने हो और सुरक्षा
संबंधी अग्रिम आदेशों के लिए यह प्रथम सूचना रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर
मॅजिस्ट्रेट के सामने पेश हो तथा मामले की जाँच पुलिस उपाधीक्षक स्तर का
अधिकारी करे, मामला फास्ट ट्रॅक कोर्ट में चले और सूचना देने में देरी के
उत्तरदायी सभी लोकसेवक जब तक निर्दोष साबित न हों, सह-अपराधी माने
जायें. आरटीआई कार्यकर्ताओं को 'गवाह सुरक्षा अधिनियम' के तहत सुरक्षा
दिए जाने की माँग भी उठाई गयी.


वक्ताओं ने कहा "90 प्रतिशत आयोगों के मुख्य आयुक्त सेवानिवृत्त सिविल
सर्वेंट हैं. यह डोरभाग्यपूर्ण है कि नौकरशाही मानसिकता के खिलाफ लड़ने
के लिए बनाए गये आरटीआई क़ानून के दो तिहाई संरक्षक सेवानिवृत्त नौकरशाह
हैं जो चिंता का विषय है. सरकारों द्वारा आयुक्तों की नियुक्तियों में
नमित शर्मा प्रकरण में उच्च्तम न्यायालय द्वारा दिए गये अनिवार्य
निर्देशों का भी अनुपालन नही किया जाना चिंताजनक है.भाई-भतीजावाद में
लिप्त सरकारों द्वारा सत्ता के चापलूसों को इस 'हाथ ले और इस हाथ दे' के
लिए आयुक्त बनाया जा रहा है.आयोगों द्वारा अपनी अक्षमता छुपाने के लिए
लंबित मामलों और आयोगों के आदेशों को जारी ही नही किया जा रहा है. कुछ
मामलों में तो आरटीआई के मुक़ाबले अन्य माध्यमों से सूचना पाना आसान है.
सूचना आयोगों में मानवाधिकारों का जमकर हनन किया जा रहा है .सूचना
आयुक्तों को जनता के साथ रहकर गुण-दोष के आधार पर सरकार के खिलाफ लड़ना
है पर आयुक्त आँख बंद करके सरकार के साथ होकर जनता से ही लड़ रहे
हैं.सूचना आयुक्तों को उच्च पदीय समकक्षता उच्च ज़िम्मेवारियों का एहसास
करने और शक्ति के सही प्रयोग के लिए दी गयीं थी न कि आम जनता का उत्पीड़न
करने के लिए.सरकारें आरटीआई की धार को सीनाज़ोरी से बापस नहीं ले सकतीं
है सो अब चोरी से बापस ले रहीं हैं. चापलूस सूचना आयुक्तों को नियुक्त
किया जाना इसी साजिश के हिस्सा है. सूचना आयुक्त इस एक्ट के अधीन सौंपे
गये कार्य करने को वाध्य हैं पर उनमें निहित स्वार्थ और सस्ती लोकप्रियता
के लिए पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़तीजा रही है. आयोग न्यायालयों की
भाँति मामलों को लंबित रखने के रोग से ग्रसित हो गये हैं. सूचना आयुक्तों
के पदग्रहण से पूर्व उनका प्रशिक्षण आवश्यक है पर बिना प्रशिक्षण के
आयोगों में कार्यरत आयुक्तों की शिथिलता से आरटीआई फेटीग बढ़ रहा है.29
सूचना आयोगों में बैठे 138 सूचना आयुक्त भारत में पारदर्शिता के इस
क़ानून की समय पूर्व मृत्यु का कारण बन रहे हैं."


आँकड़ों पर बोलते हुए वक्ताओं ने कहा "केंद्रीय विभागों से माँगी गयी
आरटीआई में 7 प्रतिशत मामले आयोग जा रहे हैं. राज्यों में यह संख्या अधिक
है.सूचना आयोगों में लंबित मामले 2 लाख से अधिक हैं जिनमें से 25 प्रतिशत
अकेले उत्तर प्रदेश से हैं. 2 प्रतिशत से भी कम मामलों में दंड और 1
प्रतिष्ट से भी कम मामलों में मुआवज़ा दिलाया जा रहा है जबकि आधे से अधिक
मामले दंड लगाने के पात्र होते हैं."


अधिकांश वक्ताओं ने सूचना आयोगों में सिटीज़न चार्टर लागू कर सूचना
आयुक्तों के कार्यों एवं आचरण के मानक निर्धारित करने की माँग की और कहा
कि आयोगों में मामलों के पंजीकरण और निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित
की जाए.


कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश कमलेश्वर नाथ ने की.
सेवानिवृत्त आई.ए.एस. और पी. आई. एल. एक्टिविस्ट एस. एन. शुक्ल ने मुख्य
अतिथि के रूप में तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त आइ.पी.एस
एस. आर. दारापुरी विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित हुए और
देश भर से आए आरटीआई कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया.


पारदर्शिता,जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने
में अग्रणी सामाजिक संगठन तहरीर के संस्थापक इंजीनियर संजय शर्मा, जेएनयू
नई दिल्ली के रिसर्च फैलो सुसांता कुमार मलिक, और आरटीआई प्रयोगकर्ताओं
की सुरक्षा के मद्देनज़र गुमनाम आरटीआई दायर करने के लिए शुरू की गयी
विश्वविख्यात पहल 'आरटीआई अनॉनीमस' के संस्थापक सदस्य अवनीश सिंह
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता थे.


कार्यक्रम में लोकेश बत्रा,डा० नीरज कुमार, सलीम बेग, आशीष सागर, उर्वशी
शर्मा,रामस्वरूप यादव सहित देश के सैकड़ों नामी गिरामी आरटीआई
कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने विचारों को साझा कर सूचना आयोगों के कार्यों
का मूल्यांकन किया और सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने हेतु
सुझाव दिए. येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा ने बताया कि इन
सुझावों में से साझे सुझाव आयोजक संस्था येश्वर्याज द्वारा देश के सभी 29
सूचना आयोगों को प्रेषित किए जाएँगे.


इस अवसर पर देश में पारदर्शिता के आंदोलन का मजबूती से नेतृत्व करने तथा
विस्तृत लोकहित बाले जनकल्याणकारी कार्यों के लिए आरटीआई का प्रयोग कर
देश को सार्थक परिणाम देने बाले उत्तर प्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता
कोमोडोर लोकेश बत्रा और दिल्ली के समाजसेवी सुभाष चन्द्र अग्रवाल को इस
वर्ष का 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक लाइफटाइम अचीव्मेंट आरटीआई सम्मान
2015' देकर सम्मानित किया गया.


आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाने समेत अनेकों
जनकल्याणकारी कार्यों के लिए आरटीआई का प्रयोग करने बाले उत्तर प्रदेश के
हाथरस जिले के निवासी गौरव अग्रवाल को 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक
आरटीआई रत्न सम्मान 2015' का प्रथम पुरस्कार दिया गया. आरटीआई का प्रयोग
पर्यावरण समेत अन्य ज़मीनी समस्याओं के समाधान के लिए उठाने बाले उत्तर
प्रदेश के बांदा जिले के निवासी आशीष सागर द्वितीय पुरस्कार विजेता बने
तो वही ' समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के आरटीआई द्वारा
सशक्तीकरण' के प्रतिमान बने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के निवासी गुरु
प्रसाद ने तृतीय पुरस्कार जीता.


विगत वर्ष में आरटीआई प्रयोगकर्ताओं के उत्पीड़न की घटनाओं में हुई
बेहताशा बढ़ोत्तरी के मद्देनज़र सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान
ने उत्पीड़न के शिकार ऐसे आरटीआई कार्यकर्ताओं को भी 'विष्णु दत्त
मिश्रा स्मारक आरटीआई बहादुरी सम्मान 2015' प्रदान कर उनकी हौसला-आफजाई
की जिन्होने उत्पीड़न का शिकार होने पर भी विषम परिस्थितिओं का डटकर
मुकाबला किया और पारदर्शिता की मशाल की ज्वाला को मध्यम नही पड़ने दिया.
आरटीआई कार्यकर्ता सलीम बेग,अखिलेश सक्सेना,बाल कृष्ण गुप्ता,अशोक कुमार
गोयल,होमेंद्र कुमार,हरपाल सिंह,कमलेश अग्रहरि, केदार नाथ सैनी,महेंद्र
अग्रवाल,अशोक कुमार शुक्ल,नीरज शर्मा और सैयद शारिक़ कमर को उनकी बहादुरी
के लिए आरटीआई बहादुरी सम्मान 2015' प्रदान कर सम्मानित किया गया.


कार्यक्रम में 'कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव' नई दिल्ली की ओर से
उपलब्ध कराई गई आरटीआई मार्गदर्शिका का नि:शुल्क वितरण भी किया गया.

Urvashi Sharma - Secretary-Yaishwaryaj Seva Sansthaan,
Mobile – 9369613513, 8081898081, 9455553838 E-mail rtimahilamanchup@gmail.com

सूचना आयोगों में सिटीज़न चार्टर लागू कर सूचना आयुक्तों के कार्यों एवं आचरण के मानक निर्धारित करने और आयोगों में मामलों के पंजीकरण और निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित करने की माँग



Press Note.18-04-15."लोकतंत्र रक्षक है आरटीआई एक्टिविस्ट". "सुशासन की मास्टर-चाभी है आरटीआई." "आरटीआई  कमजोर तो लोकतंत्र कमजोर."   "इन्फो डिलेड इस इन्फो डिनाइड." "आरटीआई किल्स टू."..... यह बानगी है उन नारों की जो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देश भर केसे आए आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपने संबोधनों में कहे. मौका था सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान की ओर से आयोजित किए जाने बाले 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक आरटीआई रत्न सम्मान समारोह 2015' और 'आरटीआई एक्ट संरक्षक के दायित्वों के निर्वहन में सूचना आयोगों की प्रभावकारिता' विषयक राष्ट्रीय विचार गोष्ठी  का जिसमें  देश के 29 सूचना आयोगों के संगठन,परिश्रम,क्षमता पर विस्तृत  विचार विमर्श किया गया और आयोगों के कार्यों और मूल्यांकन कर रिपोर्ट कार्ड बनाया गया. इस मौके पर आरटीआई कार्यकर्ताओं द्वारा सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने हेतु सुझाव दिए गये  जिनमें से साझे  सुझाव इस संस्था द्वारा देश के सभी 29 सूचना आयोगों को प्रेषित किए जाएँगे.
 
 
देशवासियों के 15 वर्षों के  कठिन प्रयासों से मिला आरटीआई एक्ट लागू होने के दसवें वर्ष में ही अपनी धार खोता नज़र रहा है ऐसे में यह सबाल उठना लाजिमी है कि आख़िर पारदर्शिता के इस औजार के संरक्षक  सूचना आयोगों ने भारत में आरटीआई  के सिस्टम को स्थापित करने और उसे मजबूती देने की दिशा में क्या काम किया है. यह सबाल पहले भी उठता रहा है और इस बार इस सबाल को उठाया है कार्यक्रम में भारत के विभिन्न राज्यों से आए देश भर के सैकड़ों आरटीआई कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राय उमानाथ बाली प्रेक्षागृह के जयशंकर प्रसाद सभागार में.
 
 
वक्ताओं द्वारा  सेमिनार में आरटीआई के परिपेक्ष में निम्नलिखित विचार रखे गये :
"लोकप्रियता की बात करें तो  भारत के  संविधान के बाद आरटीआई एक्ट सबसे अधिक लोकप्रिय है . आरटीआई एक्टिविस्ट भी  मानवाधिकार कार्यकर्ता ही हैं. पर अब तक आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमलों के 250 से अधिक मामले प्रकाश में आ चुके हैं जिनमे से 40 मामले  हत्या के  है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि विहिसिल-ब्लोअर क़ानून के  बाद भी आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या का सिलसिला  रुक नहीं रहा है जो सरकार की पारदर्शिता और सुशासन के प्रति वचनबद्धता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है. देश के राजनैतिक दल स्वयं को आरटीआई से बाहर रखने के लिए हर संभव चालें चल रहे हैं. आरटीआई आवेदनों की संख्या में बढ़ोत्तरी का कम होना यह बताता है कि नागरिकों में सरकार के प्रति विश्वास में कमी आ रही है. प्रतिभागी लोकतंत्र की स्थापना के लिए प्रशासनिक विशेषाधिकारों पर नियंत्रण आवश्यक है पर आरटीआई को कमजोर करना लोकतंत्र को कमजोर करना है. आज सरकारें पारदर्शिता के प्रति बचनबद्ध नही रह गयीं हैं और हैं लोकतांत्रिक प्रशासन की स्थापना और समाज के वंचित वर्ग के हित सुरक्षित रखने के इस सबसे  प्रभावी माध्यम की धार को कुन्द करने में लगीं हैं. महज 0.4प्रतिशत भारतीयों द्वारा प्रयोग किए जाने बाले इस एक्ट ने सरकारों की चूलें हिला दीं तो सोचिए क्या होगा जब भारत की अधिसंख्य आवादी इस एक्ट का प्रयोग कर अपने अधिकारों की माँग करेगी, शायद इसीलिए सरकारें इस एक्ट के प्रचार प्रसार के प्रति सोची-समझी रणनीति के तहत नितांत उदासीन रवैया अपनाए हुई हैं."
 
 
आरटीआई आवेदनों की संख्या का रिकॉर्ड रखने का कोई भी सरकारी तंत्र नहीं है और इसीलिए आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले के मामलों की सही संख्या भी मालूम नहीं है.इस पर क्षोभ प्रगट करते हुए वक्ताओं ने माँग रखी कि आरटीआई एक्टिविस्टो द्वारा अपने उत्पीड़न के संबंध में  दी गयी शिकायतों  पर तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर कार्यवाही होने हो और  सुरक्षा संबंधी अग्रिम आदेशों के लिए यह प्रथम सूचना रिपोर्ट 24 घंटे  के अंदर मॅजिस्ट्रेट के सामने पेश हो तथा  मामले की जाँच पुलिस उपाधीक्षक स्तर का अधिकारी करे, मामला फास्ट ट्रॅक कोर्ट में चले और सूचना देने में देरी के उत्तरदायी सभी लोकसेवक  जब तक निर्दोष साबित न हों,  सह-अपराधी माने जायें.  आरटीआई कार्यकर्ताओं को 'गवाह सुरक्षा अधिनियम' के तहत सुरक्षा दिए जाने की माँग भी उठाई गयी.
 
 
वक्ताओं ने कहा "90 प्रतिशत आयोगों के मुख्य आयुक्त सेवानिवृत्त सिविल सर्वेंट हैं. यह डोरभाग्यपूर्ण है कि नौकरशाही मानसिकता के खिलाफ लड़ने के लिए बनाए गये आरटीआई क़ानून के दो तिहाई संरक्षक सेवानिवृत्त नौकरशाह हैं जो चिंता का विषय है. सरकारों द्वारा आयुक्तों की नियुक्तियों में नमित शर्मा प्रकरण में उच्च्तम न्यायालय द्वारा दिए गये अनिवार्य निर्देशों का भी अनुपालन नही किया जाना चिंताजनक है.भाई-भतीजावाद में लिप्त सरकारों द्वारा सत्ता के चापलूसों को इस 'हाथ ले और इस हाथ दे' के लिए आयुक्त बनाया जा रहा है.आयोगों द्वारा अपनी अक्षमता छुपाने के लिए लंबित मामलों और आयोगों के आदेशों को जारी ही नही किया जा रहा है. कुछ मामलों में तो आरटीआई के मुक़ाबले अन्य माध्यमों से सूचना पाना आसान है. सूचना आयोगों में मानवाधिकारों का जमकर हनन किया जा रहा है .सूचना आयुक्तों को जनता के साथ रहकर गुण-दोष के आधार पर सरकार के खिलाफ लड़ना है पर आयुक्त आँख बंद करके सरकार के साथ होकर जनता से ही लड़ रहे हैं.सूचना आयुक्तों को उच्च पदीय समकक्षता उच्च ज़िम्मेवारियों का एहसास करने और शक्ति के सही प्रयोग के लिए दी गयीं थी न कि आम जनता का उत्पीड़न करने के लिए.सरकारें आरटीआई की धार को सीनाज़ोरी से बापस नहीं ले सकतीं है सो अब चोरी से बापस ले रहीं हैं. चापलूस सूचना आयुक्तों को नियुक्त किया जाना इसी साजिश के हिस्सा है. सूचना आयुक्त इस एक्ट के अधीन सौंपे गये कार्य करने को वाध्य हैं पर उनमें निहित स्वार्थ और सस्ती लोकप्रियता के लिए पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़तीजा रही है. आयोग न्यायालयों की भाँति मामलों को लंबित रखने के रोग से ग्रसित हो गये हैं. सूचना आयुक्तों के पदग्रहण से पूर्व उनका प्रशिक्षण आवश्यक है पर बिना प्रशिक्षण के आयोगों में कार्यरत आयुक्तों की शिथिलता से आरटीआई फेटीग बढ़  रहा है.29 सूचना आयोगों में बैठे 138 सूचना आयुक्त भारत में पारदर्शिता के इस क़ानून की समय पूर्व मृत्यु का कारण बन रहे हैं."
 
 
आँकड़ों पर बोलते हुए वक्ताओं ने कहा "केंद्रीय विभागों से माँगी गयी आरटीआई में 7 प्रतिशत मामले आयोग जा रहे हैं. राज्यों में यह संख्या अधिक है.सूचना आयोगों में लंबित मामले 2 लाख से अधिक हैं जिनमें से 25 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश से हैं. 2 प्रतिशत से भी कम मामलों में दंड और 1 प्रतिष्ट से भी कम मामलों में मुआवज़ा दिलाया जा रहा है जबकि आधे से अधिक मामले दंड लगाने के पात्र होते हैं."
 
 
अधिकांश वक्ताओं ने सूचना आयोगों में सिटीज़न चार्टर लागू कर सूचना आयुक्तों के कार्यों एवं आचरण के मानक निर्धारित करने की माँग की और कहा कि आयोगों में मामलों के पंजीकरण और निस्तारण के लिए समय सीमा निर्धारित की जाए.
 
 
कार्यक्रम की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश कमलेश्वर नाथ ने की. सेवानिवृत्त आई..एस. और पी. आई. एल. एक्टिविस्ट  एस. एन. शुक्ल ने मुख्य अतिथि के रूप में तथा  मानवाधिकार कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त आइ.पी.एस एस. आर. दारापुरी विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित हुए और देश भर से आए आरटीआई कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया.
 
 
पारदर्शिता,जबाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने में अग्रणी सामाजिक संगठन तहरीर के संस्थापक इंजीनियर संजय शर्मा, जेएनयू नई दिल्ली के रिसर्च फैलो सुसांता कुमार मलिक, और  आरटीआई प्रयोगकर्ताओं की सुरक्षा के मद्देनज़र गुमनाम आरटीआई दायर करने  के लिए शुरू की गयी विश्वविख्यात पहल 'आरटीआई अनॉनीमस' के संस्थापक सदस्य अवनीश सिंह कार्यक्रम में मुख्य वक्ता थे.
 
 
कार्यक्रम में लोकेश बत्रा,डा० नीरज कुमार, सलीम बेग, आशीष सागर, उर्वशी शर्मा,रामस्वरूप यादव  सहित देश के सैकड़ों नामी गिरामी आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने विचारों को साझा कर सूचना आयोगों के कार्यों का मूल्यांकन किया और सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली में सुधार लाने हेतु सुझाव दिए. येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा ने बताया कि इन सुझावों में से साझे सुझाव आयोजक संस्था येश्वर्याज द्वारा देश के सभी 29 सूचना आयोगों को प्रेषित किए जाएँगे.  
 
 
इस अवसर पर देश में पारदर्शिता के आंदोलन का  मजबूती से नेतृत्व करने तथा विस्तृत लोकहित बाले जनकल्याणकारी  कार्यों के लिए आरटीआई का प्रयोग कर देश को सार्थक परिणाम देने बाले उत्तर प्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता कोमोडोर लोकेश बत्रा और दिल्ली के समाजसेवी सुभाष चन्द्र अग्रवाल  को इस वर्ष का 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक लाइफटाइम अचीव्मेंट आरटीआई  सम्मान 2015' देकर सम्मानित किया गया.
 
 
आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाने समेत अनेकों जनकल्याणकारी कार्यों के लिए आरटीआई का प्रयोग करने बाले उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के निवासी गौरव अग्रवाल  को 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक आरटीआई रत्न सम्मान 2015' का प्रथम पुरस्कार दिया गया. आरटीआई का प्रयोग पर्यावरण समेत अन्य  ज़मीनी समस्याओं  के समाधान के लिए उठाने बाले उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के निवासी आशीष सागर  द्वितीय पुरस्कार विजेता बने तो वही ' समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के आरटीआई द्वारा सशक्तीकरण' के प्रतिमान बने उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के निवासी गुरु प्रसाद ने तृतीय पुरस्कार जीता.
 
 
विगत वर्ष में आरटीआई प्रयोगकर्ताओं के उत्पीड़न की घटनाओं में हुई बेहताशा बढ़ोत्तरी के मद्देनज़र सामाजिक संगठन येश्वर्याज सेवा संस्थान ने उत्पीड़न के शिकार ऐसे  आरटीआई कार्यकर्ताओं को भी 'विष्णु दत्त मिश्रा स्मारक आरटीआई बहादुरी सम्मान 2015' प्रदान कर उनकी हौसला-आफजाई की जिन्होने उत्पीड़न का शिकार होने पर भी विषम परिस्थितिओं का डटकर मुकाबला किया और पारदर्शिता की मशाल की ज्वाला को मध्यम नही पड़ने दिया. आरटीआई कार्यकर्ता सलीम बेग,अखिलेश सक्सेना,बाल कृष्ण गुप्ता,अशोक कुमार गोयल,होमेंद्र कुमार,हरपाल सिंह,कमलेश अग्रहरि, केदार नाथ सैनी,महेंद्र अग्रवाल,अशोक कुमार शुक्ल,नीरज शर्मा और सैयद शारिक़ कमर को उनकी बहादुरी के लिए आरटीआई बहादुरी सम्मान 2015' प्रदान कर सम्मानित किया गया.
 
 
कार्यक्रम में 'कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव' नई दिल्ली की ओर से उपलब्ध कराई गई आरटीआई मार्गदर्शिका का नि:शुल्क वितरण भी किया गया.
 Urvashi Sharma - Secretary-Yaishwaryaj Seva Sansthaan,       
Mobile – 9369613513, 8081898081, 9455553838   E-mail rtimahilamanchup@gmail.com