कहने बालों ने सही ही कहा है 'माले मुफ्त, दिले बेरहम', यानि कि अगर मुफ्त का माल हो तो उड़ाने में दर्द नहीं होता है। इसीलिये तो आजकल सरकारें जनता के पैसों को मनमर्जी उड़ाने में कतई संकोच नहीं करती हैं और सरकारी खजाने को अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जमकर इस्तेमाल करती हैं।
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