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अमिताभ ठाकुर माफ़ी मांगो वर्ना...!
August 29, 2014
Written by अमिताभ ठाकुर
Published in उत्तर प्रदेश
Amitabh Thakur: मुझे डरना अच्छा लगता है क्योंकि टीवी वाले कहते हैं "डर
के आगे जीत है". मैंने "गाँधी और उनके सेक्स-प्रयोग" शीर्षक से जो नोट
लिखा था वह मुझे जीवन के कई नए आयाम दिखा रहा है. मैंने अपने लेख में मूल
रूप से गाँधी की दूसरी विवाहित/अविवाहित महिलाओं के साथ नंगे अथवा अन्यथा
सार्वजनिक रूप से सोने के प्रयोग पर कड़ी टिप्पणी करते हुए उसे पूर्णतया
गलत बताया और कहा कि यदि हर आदमी ऐसा करने लगे तो समाज की संरचना वहीँ
समाप्त हो जाएगी. मैंने कहा कि गाँधी ऐसा मात्र अपने मजबूत सामाजिक और
राजनैतिक रसूख के कारण कर पाए, यद्यपि उनके आश्रम में ये सभी नियम मात्र
उनके लिए लागू होते थे, अन्य लोगों को इस प्रकार दूसरी महिलाओं के साथ
सोने की छूट नहीं थी बल्कि उन्हें उलटे ब्रह्मचर्य और अलग-अलग सोने के
आदेश थे जो उनके दोहरे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है. मैंने कहा कि
मैं उक्त कारणों से निजी स्तर पर गाँधी को अपना राष्ट्रपिता मानने से
इनकार करता हूँ.
उसके बाद लखनऊ निवासी श्री प्रताप चन्द्र का एक व्यक्तिगत आक्षेपयुक्त
नोट मुझे मिला जिसमे उन्होने अन्य बातों के आलावा लिखा- "अमिताभ जी सस्ती
लोकप्रियता पाने के लिए ऐसे अपने "गैर औरतों के साथ सोनें के निजी
तजुर्बों" को बापू के बहाने मत पोस्ट किया करें.....अमिताभ जी एक मुफ्त
की राय है कि अपनें पिता की और अपना DNA जरूर टेस्ट करा लीजिये जिससे
मालूम हो सके की वो ही आपके पिता है, वरना कैसे मालूम और क्या प्रमाण है
कि वही आपके पिता हैं...."
मैंने इसे प्रताप जी की महात्मा गाँधी के प्रति निष्ठा और श्रद्धा मानते
हुए उसे नज़रंदाज़ करना उचित समझा क्योंकि जब भावनाओं पर ठेस लगती है तो
मनुष्य निश्चित रूप से तर्क का पथ छोड़ देता है और उसे बहुत गलत नहीं माना
जा सकता. कमोबेश ऐसी ही बातें कुछ अन्य लोगों ने भी कही और गाँधी जैसे
ऊँचे कद के व्यक्ति के लिए इस प्रकार कुछ लोगों का भावुक होना स्वाभाविक
है.
इसके बाद मुझे स्पष्ट धमकी भरे आदेश मिलने लगे. श्री प्रताप ने कहा-
"श्री अमिताभ ठाकुर और उनका समर्थन करने वाले लोग जो सरकार की नौकरी कर
रहे है एक लोक सेवक हैं और गाँधी जी राष्ट्रीय प्रतीक हैं किसी भी लोक
सेवक द्वारा राष्ट्रीय प्रतीकों के विरुद्ध सार्वजनिक बयान देना राज्य के
प्रति बिद्रोह का प्रदर्शन है। इसके लिए IG श्री अमिताभ ठाकुर को अपनें
इस असंवैधानिक और राष्ट्रद्रोही विचार के लिए माफ़ी मांगनी चाहिये" और "अब
राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी नें सर्वसम्मत से तय किया है की इन पर
कानूनी कार्यवाही तत्काल की जायेगी और गृह सचिव के संज्ञान में मामला
लाने के बाद हाई कोर्ट में अवमानना की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जायेगी
... इन लोगों को बर्खास्त कर देना चाहिए लेकिन देखते हैं क्या होता है।"
उसके बाद श्री विजय कुमार पाण्डेय (Vijay Kumar Pandey) जो लखनऊ हाई
कोर्ट में अधिवक्ता हैं, ने और भी कड़े अंदाज़ में मुझे आदेशित किया-"गांधी
को राज्य ने राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है जिसे आप लोग नही मानते। दूसरी
तरफ यह मामला अवमानना के तहत आता है जिसके लिए माननीय उच्चन्यायालय ने
गृह सचिव भारत सरकार को 1971 के एक्ट का हर हालत मे कराने का आदेश दिया
है जिसकी कापी आपको भी गयी होगी। अमिताभ जी ने लोगों को राज्य विरोधी
बयान के लिए उकसाने जैसा संगीन अपराध किया है। इससे यह प्रतीत होता हैं
की इनका सरकारी सेवा में रहना किसी भी दृष्टि उचित प्रतीत नही होता।
अमिताभ और उनके समर्थकों के विरुद्ध जो कदम उठायें जायेंगे बताना जरुरी
है-----1 कल दर्ज होगी FIR 2 गृह सचिव के संज्ञान में मामला लाने के बाद
अवमानना की कार्यवाही प्रारम्भ की जायेगी। अदालत तय करे की कानून का पालन
कैसे हो। अगर आप लोग अपनी पोस्ट को हटा लेते हैं और माफ़ी मांग लेते हहैं
तो यह माना जा सकता है की अनजाने में ऐसा हुआ है। नहीं तो यह मान लिया
जाएगा की जानबूझकर होशो हवास में ऐसा किया गया है।"
निवेदन करूँगा कि जहां तक किसी भी व्यक्ति की भावना आहत करने का प्रश्न
है यह ना तो मेरा उद्देश्य था और ना है. पुनः कहूँगा कि चूँकि मेरी बातों
से श्री प्रताप, श्री विजय पाण्डेय या अन्य लोगों की भावनाएं आहत हुई
हैं, अतः उस हद तक मैं निशर्त माफ़ी मांगता हूँ क्योंकि यह लिखते समय मेरा
उद्देश्य अपने मत को व्यक्त करना था, आप लोगों की भावनाओं को आहत करना
नहीं. अतः मेरी बातों से भावना आहत होने के लिए पुनश्च निशर्त माफ़ी.
लेकिन इसके साथ ही यह भी कहूँगा कि यह माफ़ी इसलिए नहीं है ताकि आप एफआईआर
नहीं कराएं अथवा मेरे खिलाफ शिकायत नहीं करें अथवा अवमानना नहीं करें.
यदि आप चाहते हैं और आपको लगता है कि मैं गलत पर हूँ तो बेशक ऐसा करें
क्योंकि यही आपका धर्म होगा लेकिन साथ ही कृपया निम्न बातों पर भी एक बार
ध्यान दे दें-
1. एक सरकारी सेवक को भी उसके आचरण नियमावली में अपने शासनेतर अकादमिक
मुद्दों पर अपने निजी मत व्यक्त करने का कानूनी अधिकार है. मेरा यह लेख
एक पूर्णतया अकादमिक और ऐतिहासिक विषय पर है, जो मैंने अपनी निजी हैसियत
में लिखा है जिस हेतु मुझे भी इस देश के नागरिक के रूप में उतने ही
अधिकार प्रदत्त किये गए हैं, जितने आप को, थोड़े भी कम नहीं
2. गाँधी जी एक अति सम्मानित व्यक्ति हैं और आम तौर पर राष्ट्रपिता कहे
जाते हैं पर जन सूचना अधिकार से प्राप्त विभिन्न उत्तरों से यह स्पष्टतया
स्थापित हो गया है कि भारत सरकार द्वारा उन्हें कभी भी आधिकारिक रूप से
यह उपाधि नहीं दी गयी जैसा विशेषकर युवा आरटीआई कार्यकर्त्ता ऐश्वर्या
पराशर को गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक
15/10/2012 में अंकित है कि गांधीजी को राष्ट्रपिता घोषित करने के
सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की गयी क्योंकि संविधान के अनुच्छेद
18(1) में इस प्रकार की उपाधियाँ निषिद्ध हैं. पुनः इसी प्रकार की बात
ऐश्वर्या पराशर बनाम संस्कृति मंत्रालय में केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश
दिनांक 07/08/2013 में भी कही गयी. हरियाणा के युवा आरटीआई कार्यकर्ता
श्री अभिषेक कादियान को भारत सरकार द्वारा प्रेषित पत्र दिनांक
18/06/2012 में भी यह बात कही गयी कि यद्यपि गांधीजी आम तौर पर
राष्ट्रपिता कहे जाते हैं पर भारत सरकार ने उन्हें ऐसी कोई उपाधि कभी
नहीं दी.
अतः निवेदन करूँगा कि चूँकि गांधीजी आधिकारिक अथवा न्यायिक रूप से इस देश
के राष्ट्रपिता घोषित ही नहीं हैं, ऐसे में मेरे द्वारा एक व्यक्ति के
विषय में व्यक्त विचार के किसी भी प्रकार से किसी राष्ट्रीय प्रतीक अथवा
राष्ट्र के प्रति विरोध होने का प्राथमिक स्तर पर भी प्रश्न नहीं उठता
है.
3. संभवतः आप राष्ट्रद्रोह की भारतीय दंड संहिता की धारा 124क में दी
परिभाषा से बहुत परिचित नहीं है क्योंकि यहाँ परिभाषित राजद्रोह विधि
द्वारा स्थापित सराकर के विरुद्ध कार्य करने से सम्बंधित है, ना ही किसी
व्यक्ति के विषय में अपना मत व्यक्त करने से सम्बंधित.
4. जहां तक 1971 के प्रिवेंशन ऑफ़ इन्सल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट और इससे जुड़े
न्यायालय के अवमानना का प्रश्न है, पुनः सादर निवेदन है कि यह एक्ट
राष्ट्रीय ध्वज, देश के संविधान और राष्ट्रीय एम्बलेम के अपमान से जुड़ा
है, इसमें गाँधी जी सहित किसी व्यक्ति विशेष के प्रति अपने निजी विचार
व्यक्त करने को किसी भी प्रकार से अपराध नहीं माना गया है.
मैंने अपनी जानकारी के अनुसार इस प्रश्न से जुड़े विधिक पहलुओं को
प्रस्तुत किया है. मैं पुनः कहता हूँ कि मेरा मत या उद्देश्य किसी की भी
भावनाओं को आहत करना नहीं था पर इसके साथ ही एक नागरिक के रूप में मुझे
विभिन्न सामाजिक और अकादमिक प्रश्नों पर अपने निजी विचार रखने और उन्हें
व्यक्त करने के संवैधानिक अधिकार हैं, अतः मैं भविष्य में भी व्यक्त करता
रहूँगा, चाहे इससे मुझे यश मिले या अपयश, मित्र मिलें या शत्रु, मान मिले
या अपमान.
निष्कर्षतया एक सामाजिक और संवेदनशील व्यक्ति के रूप में गांधीजी के
समर्पित अनुयायियों की भावनाएं आहता होने के सम्बन्ध में निशर्त
क्षमायाचना, विधिक रूप से दी गयी धमकीनुमा चेतावनी से पूर्ण असहमति और
प्रस्तुत विषय पर वर्तमान में कोई अग्रिम मंतव्य नहीं क्योंकि ऐसा करने
के पहले कुछ और विस्तृत अध्ययन करना चाहूँगा.
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार।
Comments
0 #1 सिकंदर हयात 2014-08-29 23:11
महात्मा गांधी और प्रेमचंद के खिलाफ लिखने से यही फायदा हे हम मशहूर भी
हो जाते हे और ज़ाहिर हे आपकी जान माल तो क्या नाख़ून भी काटने का कोई खतरा
नहीं हे वजह गांधी और प्रेमचंद होते तो वो खुद भी अपने खिलाफ हर आवाज़ को
दबाने का विरोध ही करते ऐसे ही देखे तो अल्लाह माफ़ करे प्रेमचंद के खिलाफ
लिखने से पहले मेने डॉक्टर --- साहब का कभी नाम भी नहीं सुना था आज
लाइब्रेरी में जगह जगह वो शेल्फ से झांकते दीखते हे इसी लीक पर एक और
अनमोल रतन भी शायद चल रहे थे मगर उन्हें खास सफलता नहीं मिली क्योकि
डॉक्टर साहब ने पहले ही '' प्रेमचंद खिलाफ मार्किट '' पर कब्ज़ा कर लिया
था
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