तहरीर। ०३ जून २०१५। लखनऊ। शायद प्रशासन को मजबूती देने के लिए बनायी गयी नौकरशाही, जिसे स्टील फ्रेम भी कहा जाता था, अब खुद ही शक्तिहीन हो गयी है या ये भी कह सकते हैं कि यह स्टील फ्रेम अब जंग लग कर इस कदर टूट-फूट चूका है कि खुद ही सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा है l ऐसे में कमोवेश पूर्णतया रीढ़विहीन हो चुकी इस नौकरशाही द्वारा नीतियों के स्थान पर सत्ताधारी राजनैतिक दलों की मंशा के अनुसार काम करने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। कुछ ऐसा ही खुलासा मेरी एक आरटीआई से हुआ है कि यूपी का संस्कृति विभाग किसी नीति नहींअपितु सत्ताधारी राजनैतिक दल की मंशा के अनुसार काम करता है।
दरअसल मैने साल २००९ से २०१४ तक के सैफई महोत्सवों में यूपी की सरकार द्वारा खर्च के गयी धनराशि की सूचना माँगी थी. जनवरी २०१४ में माँगी गयी सूचना १६ महीने बाद मई २०१५ में दी गयी है हालाँकि आरटीआई एक्ट के अनुसार ये सूचना एक माह के बाद ही मिल जानी चाहिए थी ।
संस्कृति निदेशालय द्वारा मुझे दी गयी सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने साल २००९,२०१०,२०११ में सैफई महोत्सव के आयोजन के लिए कोई आर्थिक मदद नहीं दी थी जबकि साल २०१२ में १३८.५२ लाख , साल २०१३ में ९६.५९ लाख और साल २०१४ में ९५.२९ लाख रुपयों की आर्थिक मदद दी ।
गौरतलब है कि यूपी में वर्ष २००९,२०१०,२०११ में मायावती की अगुआई बाली बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार थी और वर्ष २०१२,२०१३ और २०१४ में अखिलेश यादव की अगुआई बाली समाजवादी पार्टी की सरकार । इस संबंध में मेरा यह कहना है कि यूपी की सरकार द्वारा मायावती के कार्यकाल में सैफई महोत्सव को कोई आर्थिक मदद नही देने और अखिलेश के कार्यकाल में करोड़ों की मदद देने से यह स्वतः सिद्ध हो रहा है कि सैफई महोत्सव को आर्थिक मदद देने का निर्णय सत्ताधारी राजनैतिक दलों की मंशा के अनुसार लिया जाता है न कि किसी नीति के अंतर्गत ।
इस आरटीआई जबाब से यह भी सिद्ध हो रहा है कि शायद प्रशासन को मजबूती देने के लिए बनायी गयी नौकरशाही, जिसे स्टील फ्रेम भी कहा जाता था, अब खुद ही शक्तिहीन हो गयी है या ये भी कह सकते हैं कि यह स्टील फ्रेम अब जंग लग कर इस कदर टूट-फूट चूका है कि खुद ही सीधा खड़ा नहीं हो पा रहा है । ऐसे में कमोवेश पूर्णतया रीढ़विहीन हो चुकी इस नौकरशाही द्वारा नीतियों के स्थान पर सत्ताधारी राजनैतिक दलों की मंशा के अनुसार काम करने की घटनाएं, जो कि आम होती जा रही , इस आरटीआई का खुलासा सिद्ध कर रहा है कि यूपी का संस्कृति विभाग भी किसी नीति नहींअपितु सत्ताधारी राजनैतिक दल की मंशा के अनुसार ही काम करता है।
आरटीआई जबाब यह भी दर्शा रहा है कि मीडीया के दखल से पैदा हुए जन-दवाव के चलते अखिलेश सरकार को भी सैफई महोत्सव की सरकारी मदद में कमी करनी पड़ी है ।
ई० संजय शर्मा
संस्थापक - तहरीर
मोबाइल ८०८१८९८०८१
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