लखनऊ/23 अप्रैल
2016/ यह भी क्या संयोग
है कि साल 1976 में राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश के मामले
में उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के
अनुच्छेद 19 में वर्णित सूचना पाने के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया था पर जनांदोलनों
के कड़े संघर्ष के परिणामस्वरूप भारत की जनता को प्राप्त सूचना का अधिकार अधिनियम
लागू होने के लगभग 11 वर्ष बाद और राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश मामले के इस निर्णय
के 40 साल बाद भी उसी उत्तर प्रदेश में लोगों को इस सूचना के अधिकार को लेने के
लिए जद्दोजहत करनी पड़ रही है l इस जद्दोजहत की बानगी आज राजधानी लखनऊ में सामाजिक
संस्था येश्वर्याज सेवा संस्थान द्वारा आयोजित आरटीआई कैंप में दिखाई दी जहां
प्रदेश के सुदूर क्षेत्रों से आये सैकड़ों आरटीआई प्रयोगकर्ताओं ने अपने जानने के मूलभूत हक के रास्ते में आने बाली
समस्याओं के समाधान के लिए और येश्वर्याज के सर्वे में भाग लेने के लिए अप्रैल की
रिकॉर्डतोड़ गर्मी की परवाह किये बिना अपनी उपस्थिति दर्ज कराई l
कार्यक्रम की आयोजिका सामाजिक कार्यकत्री उर्वशी शर्मा ने
बताया कि आरटीआई एक्ट जन-साधारण का एक्ट है जिसे देश के प्रत्येक नागरिक द्वारा
सरलता से प्रयोग के लिए बनाया गया है किन्तु भ्रष्ट तंत्र ने धीरे-धीरे इस एक्ट को
भी कानूनी लफ्जों के मकडजाल में उलझा दिया है l बकौल उर्वशी अब हालात इतने खराब हो
गए हैं कि जन सूचना अधिकारियों से लेकर सूचना आयुक्त तक सभी इस कोशिश में लगे हैं
कि कौन सा गैरकानूनी तरीका अपनाकर सूचना को सार्वजनिक किये जाने से रोका जाए l
उर्वशी के अनुसार आज हालात ऐसे हो गए हैं कि लोक प्राधिकरणों के भ्रष्टाचार एवं अनियमितताएं
छुपाने के लिए जनसूचना अधिकारी सही सूचना देने की जगह कुछ भी लिखकर भेज देता है और
भ्रष्टाचार का चश्मा पहने प्रथम अपीलीय अधिकारी तो अपने निर्णयों में विवेक का
इस्तेमाल कर आरटीआई एक्ट के प्राविधानों के अनुसार निर्णय नहीं ही कर रहे हैं पर सूचना
आयुक्त तो इससे भी आगे जाकर अपने सूचना दिलाने के दायित्वों का निर्वहन करने के
स्थान पर आरटीआई आवेदक को ‘तारीख पर तारीख’ के मकडजाल में उलझाकर लोकसेवकों और
प्रभावित पक्ष द्वारा और स्वयं भी आरटीआई आवेदक का उत्पीडन कर रहे हैं और इनमें से
अनेकों मामलों में आरटीआई प्रयोगकर्ताओं को हतोत्साहित करने के लिए 315 से अधिक पर
हमले भी कराये गए हैं और 50 से अधिक की
हत्या भी हुई है l
उर्वशी ने बताया कि देश में अब तक 315 से अधिक आरटीआई
आवेदकों पर प्राणघातक हमले या गंभीर उत्पीडन की घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 63
हमलों के साथ महाराष्ट्र प्रथम स्थान पर है,40 ऐसे मामलों के साथ उत्तर प्रदेश
दूसरे स्थान पर है, 39 मामलों के साथ गुजरात तीसरे स्थान पर है तो वहीं 23 हमलों
के साथ दिल्ली का चौथा स्थान है l हमलों के 22 मामलों के साथ कर्नाटक पांचवें
स्थान पर है,15 मामलों के साथ आंध्र प्रदेश छठे स्थान पर है, 14-14 मामलों के साथ
बिहार और हरियाणा सातवें स्थान पर है, 12
मामलों के साथ उडीसा आठवें स्थान पर है,9 मामलों के साथ पंजाब नौवें स्थान पर है
और 8 मामलों के साथ तमिलनाडु दसवें स्थान पर l बकौल उर्वशी आरटीआई आवेदकों पर हुए
प्राणघातक हमलों के ये मामले देशव्यापी हैं अर्थात भारत के उत्तर में जम्मू-कश्मीर
से दक्षिण के तमिलनाडु तक l और पूर्व के आसाम,मणिपुर,मेघालय,नागालैंड,त्रिपुरा से पश्चिम
के गुजरात तक सभी राज्यों में ये हमले हो चुके हैं l
उर्वशी ने बताया कि हाल के 11 वर्षों में देश में
50 से अधिक आरटीआई
कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है । महाराष्ट्र में 12 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, इसके बाद 8-8 हत्याओं के साथ उत्तर प्रदेश और गुजरात दूसरे स्थान पर हैं। 5 हत्याओं के साथ बिहार तीसरे स्थान पर और 4 हत्याओं के साथ कर्नाटक चौथे स्थान पर है ।
आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी ने बताया कि उत्तर प्रदेश में तो हालात
इतने खराब हो गए हैं कि आधे से अधिक हमलों और उत्पीडन के ये मामले सूचना आयोग
परिसर में सरकार के भाड़े के गुंडों की तरह व्यवहार कर रहे सूचना आयुक्तों द्वारा स्वयं
किये किये गए हैं l उर्वशी ने बताया कि कुछ सूचना आयुक्तों द्वारा महिला आरटीआई
आवेदकों के साथ दुर्व्यवहार के बाद भी मुख्य सूचना आयुक्त जावेद उस्मानी महाभारत
के धृतराष्ट्र जैसा व्यवहार कर हैं और उनके अनेकों आग्रहों के बाद भी सूचना आयोग
में आज तक यौन उत्पीडन की जांच के लिए विशाखा समिति का गठन तक नहीं हो पाया है l उर्वशी ने बताया कि सामाजिक संगठन येश्वर्याज अब
भारत सरकार और सभी राज्य सरकारों को पत्र भेजकर सूचना आयुक्तों द्वारा आरटीआई
आवेदकों के उत्पीडन की शिकायतें ग्रहण कर उनके समयबद्ध निस्तारण के लिए एक अलग
नियमावली बनाने की मांग करेगा l
कैंप में आये आरटीआई
विशेषज्ञ समाजसेवी आर. एस. यादव और उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच के अधिवक्ता रुवैद
कमाल किदवई ने प्रतिभागियों को बताया कि यदि उनके आरटीआई आवेदन पर आरटीआई एक्ट की
धारा 8 और 9 के प्राविधानों के अलावा किसी अन्य आधार पर सूचना देने से इनकार किया
जाता है तो यह गलत है l किदवई ने आरटीआई आवेदकों को जनसूचना अधिकारियों द्वारा
धारा 8 और 9 के प्राविधानों के अलावा किसी अन्य आधार पर सूचना देने से मना कर देने
तथा दी गयी सूचनाओं के अपूर्ण या भ्रमपूर्ण या असत्य होने की स्थिति में अपनी
आपत्तियों में आरटीआई एक्ट के कानूनी पहलुओं का समावेश करने पर प्रशिक्षित किया l
किदवई के अनुसार आरटीआई एक्ट में सूचना के आवेदन को बापस करने का कोई प्राविधान
नहीं है और आरटीआई आवेदन बापस करना पूरी तरह गैरकानूनी है l
कार्यक्रम के
समन्वयक समाजसेवी तनवीर अहमद सिद्दीकी ने बताया कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी का ही
देश का असली मालिक होने की वास्तविकता का भान कराने के लिए आयोजित किये गए इस कैंप का उद्देश्य
आरटीआई प्रयोगकर्ताओं को आरटीआई कानून की बारीकियों पर प्रशिक्षित कर इस अधिकार का पुरजोर तरीके से इस्तेमाल करने के लिए तैयार
करने का था जिसमें यह कैंप सफल रहा है l
येश्वर्याज की सचिव
उर्वशी शर्मा ने बताया कि आज उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग में बर्तमान कार्यरत मुख्य सूचना
आयुक्त और 9 सूचना आयुक्तों में से सबसे खराब कार्य करने वाले सूचना आयुक्त का पता
लगाने के लिए और आरटीआई एक्ट को प्रभावी रूप से लागू करने के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा का पता लगाने के लिए सर्वे भी कराया गया है l उर्वशी ने बताया
कि सर्वे में अनेकों प्रतिभागियों द्वारा दोनों मुद्दों पर एक से अधिक विकल्पों को
चुने जाने के कारण सही गिनती करने में समय लगने के चलते परिणाम की घोषणा बाद में
प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से की जायेगी l
कार्यक्रम में नई दिल्ली की सामाजिक संस्था कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सी.एच.आर.आई) के सौजन्य से उपलब्ध 75 आरटीआई मार्गदर्शिका का निःशुल्क वितरण पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर किया गया l
अनेकों सामाजिक
संगठनों के साथ साथ उनके पदाधिकारी डा० संदीप पाण्डेय,डा० नीरज कुमार, कमरुल हुदा,जितेन्द्र
वहादुर सिंह होमेंद्र मिश्रा,पंकज मिश्रा,अशोक कुमार गोयल,हरपाल सिंह,संजय आज़ाद,स्वतंत्र
प्रिय गुप्ता, शीबू निगम,शमीम अहमद,शिव नारायण श्रीवास्तव,एस.के.गौतम,अश्विन
जायसवाल,प्रेम गर्ग,फरहत खानम,मनीष,आर.डी.कश्यप,मनोज कुमार आदि ने
कार्यक्रम में प्रतिभाग किया l
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