Sunday, May 31, 2015

मायावती,अखिलेश यादव और इनके मंत्रियों ने सार्वजनिक नहीं कीं अपनी परिसंपत्तियाँ ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयतायें (लायबिलिटीज़) : आरटीआई .

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स्नैपशॉट्स -> यूपी के क़ानून बनाने बाले ही तोड़ रहे क़ानून ! : अखिलेश
सरकार के पास नहीं है यूपी के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों द्वारा
द्वारा सार्वजनिक कीं गयीं परिसंपत्तियाँ ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और
देयतायें (लायबिलिटीज़) !: अखिलेश यादव यूपी के सीएम और मंत्रियों की
निजी संपत्ति,देनदारियों पर पारदर्शिता निभाने के आश्वासन में विफल ! :
मायावती और अखिलेश यादव एक ही थैली के चट्‍टे-बट्‍टे!: परिसंपत्तियाँ (
टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयतायें (लायबिलिटीज़) सार्वजनिक करने से सख़्त
परहेज करते यूपी के सीएम और मंत्री : आरटीआई से खुलासा l

लखनऊ. उर्वशी शर्मा. ३१ मई २०१५. ©UPCPRI


वर्तमान में उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार के कई मंत्रियों की
संपत्ति में तेजी से हो रही बृद्धि की खबरें प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और
सोशल मीडिया पर सुर्खियों में रही हैं ऐसे में सूबे की राजधानी लखनऊ
निवासी और देश के चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता ई० संजय शर्मा की एक
आरटीआई पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिए एक जबाब से यह खुलासा होना कि
यूपी के सीएम और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों द्वारा वर्ष 2011 से अब तक
सार्वजनिक कीं गयीं परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं
(लायबिलिटीज़) के विवरण प्रदेश की सरकार के पास नहीं हैं, एक महत्वपूर्ण
खुलासा है जो कानून बनाने बालों के द्वारा ही कानून को तोड़े जाने का
जीवंत उदहारण तो है ही, यह इन माननीयों के दोहरे चरित्र को भी उजागर कर
रहा है।

पारदर्शिता, जबाबदेही और मानवाधिकार-संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत
सामाजिक संगठन 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय कहते हैं "वैसे तो
सरकारों के लिए उच्च पदों पर भ्रष्टाचार देश की आम जनता के जीवन को
सीधे-सीधे प्रभावित करने बाले समकालीन मुद्दों में सर्वाधिक बड़ा मुद्दा
है. सरकारें ऐसा भी मानती है कि यदि देश के उच्च पदों पर आसीन लोकसेवक
अपनी परिसंपत्तियों को सार्वजनिक करने लगें तो भ्रष्टाचार पर काफ़ी हद तक
लगाम लगाई जा सकती है. पूरे देश की जनता भी ऐसा ही मानती है जिसकी बानगी
पूरे देश ने अन्ना आंदोलन के दौरान देखी जिसकी परिणति के रूप में देश को
लोकपाल क़ानून भी मिला जिसमें लोकसेवकों और उनके परिवार के सभी सदस्यों
की परिसंपत्तियाँ सार्वजनिक करना अनिवार्य कर दिया गया पर जब
परिसंपत्तियाँ सार्वजनिक करने पर अमल करने की बात आती है तो सर्वाधिक
उच्च पदों पर आसीन लोग ही दोगला व्यवहार कर अपना मुँह छुपाते नज़र आते
है."

बताते चलें कि कुछ ऐसा ही खुलासा संजय द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य
सचिव कार्यालय में दायर एक आरटीआई पर उत्तर प्रदेश के गोपन विभाग के
जनसूचना अधिकारी द्वारा १४ मई २०१५ को भेजे जबाब से हुआ है . दरअसल संजय
ने बीते साल के सितंबर माह में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव कार्यालय में
एक आरटीआई दायर करके यूपी के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों की
वित्तीय वर्ष २०१०-११,२०११-१२,२०१२-१३,२०१३-१४ एवं २०१४-१५ की कुल
परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं ( लायबिलिटीज़ ) तथा
ये विवरण न देने पर दंडित किए गये मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों
की भी सूचना माँगी थी.

मुख्य सचिव कार्यालय ने संजय का आरटीआई आवेदन उत्तर प्रदेश के गोपन
विभाग को अंतरित कर दिया था. राज्य सूचना आयोग के हस्तक्षेप के बाद गोपन
विभाग के विशेष सचिव एवं जनसूचना अधिकारी कृष्ण गोपाल द्वारा संजय को
भेजे पत्र से ये चौंकाने बाला खुलासा हुआ है कि यूपी के मुख्यमंत्री और
मंत्रिमंडल सदस्यों की कुल परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और
देयताओं ( लायबिलिटीज़ ) तथा ये विवरण न देने पर दंडित किए गये
मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों की कोई भी सूचना गोपन विभाग में
धारित नहीं है.

गोपन विभाग के जनसूचना अधिकारी ने ये भी अभिलिखित किया है कि उनको यह भी
नहीं पता है कि मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों की कुल परिसंपत्तियों
( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं ( लायबिलिटीज़ ) की ये सूचना उत्तर
प्रदेश के किस विभाग द्वारा धारित है और संजय का आरटीआई आवेदन और पोस्टल
आर्डर संजय को बापस कर दिया है.

संजय कहते हैं कि सूबे के मुख्य सचिव के कार्यालय,गोपन विभाग और राज्य
सूचना आयोग के हस्तक्षेप के बाद भी मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों
की कुल परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं ( लायबिलिटीज़ )
की सूचना मिलने के स्थान पर आरटीआई आवेदन बापस मिलने से ये तो स्पष्ट है
कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्य अपनी कुल
परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं ( लायबिलिटीज़ ) की
सूचना उत्तर प्रदेश सरकार को देते ही नहीं है। इस स्थिति को
दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए पारदर्शिता की सेना के इस सेनापति ने
अपनी आरटीआई से हुए खुलासे को उच्च पदों पर आसीन और माननीय कहे जाने
बाले लोकसेवकों के दोगले चेहरे उजागर करने बाला बताया है.

उत्तर प्रदेश सहित भारत में ज्यादातर राज्य अपने सीएम और मंत्रियों की
संपत्ति सार्वजनिक करने में असमर्थ रहे हैं है। उत्तर प्रदेश के सबसे कम
उम्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के बाद अखिलेश यादव ने
प्रशासन में पारदर्शिता की वकालत करते हुए मुख्यमंत्री और मंत्रियों की
निजी संपत्ति को सार्वजनिक करने की बात कही थी , लेकिन संजय की इस
आरटीआई से पता चला है मोटे तौर पर वह इसमें पूर्णतः विफल रहे हैं।
लोकजीवन में जबाबदेही की वकालत करने बाले सामाजिक कार्यकर्ता संजय का
मानना है कि इस खुलासे से यूपी उच्च स्थानों पर पारदर्शिता और जवाबदेही
स्थापित करने की मुहीम के सफल होने की उनकी आशाओं को एक बड़ा झटका लगा है


गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश मंत्रियों और विधायकों (आस्तियों और देयताओं
का प्रकाशन) अधिनियम (1975) राज्य विधानसभा के हर सदस्य के लिए प्रत्येक
और नए वित्तीय वर्ष के पहले 20 दिनों के भीतर अपनी संपत्ति और देनदारियों
का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है तथा लोक प्रतिनिधि अधिनियम
1951 के तहत आचार संहिता के अनुसार भी प्रत्येक विधायक को हर साल नियमित
रूप से उनके और उनके परिवार के सदस्यों की संपत्ति और देनदारियों की
घोषणा करके समाज के समक्ष एक उदाहरण स्थापित करने की उम्मीद की जाती है


संजय कहते हैं कि इन नियमों के पिछले 40 वर्षों से अस्तित्व में होने के
बावजूद हमारे नेताओं द्वारा इनको गंभीरता से नहीं लिया गया है और उनकी
इस आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि यूपी में तो क़ानून बनाने बाले ही
दिनदहाड़े खुलेआम निर्दयता से अपने निजी स्वार्थ साधने के लिए खुद के
बनाए क़ानून तोड़ रहे हैं।

आरटीआई खुलासे से क्षुब्ध इस सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है कि क्योंकि
यह सूचना मायावती और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल की हैं अतः यह
भी स्पष्ट है कि मायावती के पदच्युत होने और अखिलेश के पदारूढ़ होने से
केवल सत्ता के चेहरे मात्र ही बदले और इन कथित रूप से माननीय कहे जाने
बाले जन-प्रतिनिधियों द्वारा अपनी संपत्तियां छुपाने की पुरानी और ओछी
मानसिकता जस की तस बरकरार रही है.

असीम त्रिवेदी के कार्टून 'गैंग रेप ऑफ मदर इंडिया' का ज़िक्र करने हुए
संजय ने ©UPCPRI को बताया कि इस कार्टून को देखकर उनको लगा कि असीम
त्रिवेदी की सोच वास्तव में सही है और कहा कि यदि सही से जाँच की जाए
तो कार्टून में दिखाए राजनेताओं में से काफ़ी उनकी यूपी के भी मिल
जाएँगे. संजय का मानना है कि इन उच्च पदस्थ माननीयों के पारदर्शी हुए
बिना भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र की स्थापना संभव नहीं है और इसीलिये वे
सामाजिक संगठन 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष की हैसियत से यूपी के
राज्यपाल को ज्ञापन देकर सूबे के मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल सदस्यों को
उनकी कुल परिसंपत्तियों ( टोटल वेल्थ, एसेट्स ) और देयताओं (
लायबिलिटीज़ ) की सूचना प्रत्येक वर्ष नियमित रूप से सार्वजनिक करने के
निर्देश जारी करने की अपील करने जा रहे हैं.

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