UP : सूचना आयोग में गैरकानूनी आदेश जारी कर
सरकारी अभिलेख नष्ट कराने वाले भ्रष्ट सूचना आयुक्तों समेत सचिव के खिलाफ
एफ.आई.आर. की समाजसेविका उर्वशी की मांग.
लखनऊ/21
अगस्त 2016......
यूपी
की राजधानी लखनऊ की चर्चित समाजसेविका और आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने यूपी
के मुख्य सूचना आयुक्त और सूबे के पूर्व मुख्य सचिव जावेद उस्मानी द्वारा सूचना
आयोग की फाइलों को विनष्ट करने के लिए बीते साल मार्च में जारी किये गए एक आदेश को
अवैध बताते हुए इस आदेश को आधार बनाकर जावेद
उस्मानी, सभी 8 सूचना आयुक्तों, आयोग के सचिव राघवेन्द्र विक्रम सिंह समेत आयोग के
अनेकों अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने, भ्रष्टाचार को पोषित करने,आयोग में
भ्रष्टाचार को बढाने वाला और आरटीआई आवेदकों के साथ धोखाधड़ी बताते हुए कटघरे में
खड़ा किया है और इन सभी पर अपने निजी स्वार्थ साधने के लिए यूपी के सीएम अखिलेश
यादव की उजली छवि पर दाग लगाने का कार्य करने का आरोप लगाते हुए इन सबकी शिकायत
सूबे के सीएम और राज्यपाल को प्रेषित की है.
उर्वशी
ने बताया कि सूचना आयोग के सभी भ्रष्ट अधिकारियों ने एक राय होकर एक ऐसा आदेश जारी
कर दिया है जिसे करने के लिए सूचना आयोग अधिकृत ही नहीं था. बीते साल के मार्च माह
में यह आदेश जारी कर सूचना आयोग की फाइलों को 6 महीने बाद ही नष्ट करने का
प्राविधान किया गया है जबकि केंद्र सरकार और सूबे की सरकार ने आरटीआई के प्रकरणों
से सम्बंधित पत्रावलियों को कम से कम 3 वर्ष तक रखे जाने की अनिवार्यता रखी गयी है.
बकौल उर्वशी किसी श्रेणी की पत्रावलियों को विनष्ट किया जाना एक नीतिगत प्रश्न है
और सूचना आयुक्त या सूचना आयोग केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार की नीति से
प्रतिकूल जाकर अधिनियम की धारा 15(4) के तहत इस प्रकार का मनमाना अतिक्रमण करने के
लिए अधिकृत नहीं हैं.
उर्वशी
ने बताया कि अधिनियम की धारा 15(4) के तहत सूहना आयोग के कार्यों के साधारण
अधीक्षण,निदेशन और प्रबंध के सम्बन्ध में ही नियम बनाए जा सकते हैं न कि नीतिगत
विषयों के सम्बन्ध में. बकौल उर्वशी उनको कुछ सूत्रों से जानकारी मिली है कि आरटीआई
जद में आये भ्रष्ट लोकसेवकों के समूह ने इस गैरकानूनी आदेश को जारी कराने के लिए
जावेद उस्मानी समेत सभी सूचना आयुक्तों को घूस की मोटी रकम दी थी और इस अवैध आदेश
को बनाए रखकर सभी सूचना आयुक्त भ्रष्ट लोकसेवकों के समूह से आज भी मोटी रकम ऐंठ
रहे हैं और यही कारण है कि इलेक्शन कमिश्नर के समकक्ष पद धारित करने वाले पूर्व
मुख्य सचिव जावेद उस्मानी , मुख्य सचिव के समकक्ष पद धारित करने वाले 8 सूचना
आयुक्त और आई.ए.एस. कैडर के सचिव
राघवेन्द्र विक्रम सिंह इस अनियमितता पर आँख बंद किये हैं और 8-8 महीने आगे की तारीखे
देने वाला सूचना आयोग गुपचुप केस ख़त्म कर 6 महीने में सूचना आयुक्तों और लोकसेवकों
के भ्रष्टाचार के सबूतों को नष्ट कर रहा है.
बकौल उर्वशी यदि सूबे के सभी कार्यालयों के विभागाध्यक्ष इन सूचना आयुक्तों की मानिंद फाइलों को विनष्ट करने के मनमाने आदेश करने लगें तो अपने समय की अनियमितताओं की फाइलें अपने हिसाब से नष्ट कर निश्चिन्त हो जाएँ और सूबे का प्रशासनिक ढांचा भरभरा के गिर पड़े.सूचना आयुक्तों के द्वारा इस गैरकानूनी आदेश को जारी करने और इस गैरकानूनी आदेश के अनुसार कार्य कराने को भारतीय दंड विधान और पब्लिक रिकार्ड्स एक्ट के तहत 5 साल की सजा वाला अपराध बताते हुए उर्वशी ने एस.एस.पी. लखनऊ को एक तहरीर देकर जावेद उस्मानी, 8 सूचना आयुक्तों और सचिव राघवेन्द्र विक्रम सिंह के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखकर वैधानिक कार्यवाही की मांग की है.
बकौल
उर्वशी सूचना आयुक्तों के ऐसे गैरकानूनी कृत्यों से सूबे का नाम तो बदनाम हो ही
रहा है और साथ ही साथ पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्ध सूबे के मुखिया अखिलेश यादव
की उजली छवि पर दाग लग रहे हैं और इसीलिये उन्होंने राज्यपाल के साथ साथ अखिलेश को
पत्र भेजकर सूचना आयुक्तों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग भी की है.
UP : Activist demands penal action against SCIC,8 ICs,
Secretary others for illegal destruction of Public record.
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Text of the Memorandum sent by Urvashi is being reproduced here :
Sub. : Artfully done shrewd illegality
by UPSIC authorities with malafide,heinous & criminal intent to commit,foster & boost corruption
and also to deceive the info-seekers : Request to nullify illegal OM issued by UPSIC
in March 2015 re. weeding of records, institute an enquiry and punish SCIC, all SICs, Secretary &
others of UPSIC in accordance with the law of the land.
Dear Sir,
This refers to an OM placed on official website http://upic.gov.in/ of UPSIC under heading “Directions of CIC under section 15(4) of RTI act” http://upic.gov.in/DynamicPages/DirectionsOfCIC.aspx available at weblink http://upic.gov.in/MediaGallery/March%202015.pdf . This OM of UPSIC dated March 2015 is regarding weeding of records at UPSIC. This OM of UPSIC is grossly illegal as it contravenes G.O. no. 12/1861/43-1-2014-37(1)/1984 dated December 2014 http://shasanadesh.up.nic.in/GO/ViewGOPDF_list_user.aspx?id1=MTIjNjEjMSMyMDE0 & G.O. No. 27/2015/1377/43-1-2015-37(1)/1984 dated 19 August 2015 http://shasanadesh.up.nic.in/GO/ViewGOPDF_list_user.aspx?id1=MjcjNjEjMSMyMDE1 , both issued by the nodal department of RTI i.e. Administrative Reforms Department of U.P. Government.
Section 15(4) of RTI act reads “The general superintendence, direction and management of the affairs of the State Information Commission shall vest in the State Chief Information Commissioner who shall be assisted by the State Information Commissioners and may exercise all such powers and do all such acts and things which may be exercised or done by the State Information Commission autonomously without being subjected to directions by any other authority under this Act.”
You shall agree that fixing minimum retention period before weeding-out of files is a policy decision and in no way falls within the ambit of general superintendence, direction and management of the affairs of any office. If weeding is done by all offices in the illegal manner as done by UPSIC, all heads of departments shall be free to make their own rules as per their own whims, fancies, conveniences and weed-out all files related to their illegal, irregular, corrupt acts as per their own convenience. But if this happens so, there shall be a complete collapse of administrative system.Though minimum retention period for all files related to RTI matters is 3 years but UPSIC played foul and illegally fixed this retention period at 6 months only. I have come to know from reliable sources that to issue and implement this OM, SCIC, all SICs , Secretary & others of UPSIC have been and are continuously being heavily bribed by the corrupt public servants who are directly affected by various RTIs of various info-seekers. The issue is serious and needs an in-depth inquiry to ascertain as to what compelled UPSIC authorities to issue an OM against the prevailing rules.State Chief Information Commissioner is enjoying perks and facilities of an Election Commissioner, the State Information Commissioners are enjoying perks and facilities of the Chief Secretary to the State Government and Secretary of UPSIC is an IAS so it cannot be assumed that this combine is such an idiotic lot which do not understand the repercussions of issuance and implementation of such an illegal order, so it is for sure that the authorities at UPSIC have very artfully and shrewdly made this illegality with malafide, heinous & criminal intent to commit,foster & boost corruption by deceiving the info-seekers.Weeding out/destroying record of UPSIC before the minimum 3 year time period as prescribed in GO of Administrative reforms department, besides being illegal, is criminal also and is punishable under IPC read with records act. Central Information Commission, vide its order dated 29-08-14, passed in File no. CIC/DS/A/2013/001788-SA ( Om Prakash Vs. Land & Building Dept, GNCTD) http://www.rti.india.gov.in/cic_decisions/CIC_DS_A_2013_001788-SA_M_138483.pdf has made it clear that destruction of public record against destruction/retention policy attracts imprisonment up-to 5 years. In the same context order passed on 27-02-15 by Bombay High Court in WP no. 6961 of 2012 http://nfici.org/RTI_related_Judgements/2_Mumbai_High_Court_Judgements/25_Sec_20_SIC_order_must_be_complied_Directedn_FIR_for_loss_of_Record.pdf should also be referred. |
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