UP : Activists to move HC against illegal destruction of
UPSIC record by CIC Jawed Usmani & others.
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लखनऊ/30 अगस्त 2016......
यूपी के सूचना आयुक्तों पर भ्रष्टाचार
करने, भ्रष्टाचार को पोषित करने और आरटीआई आवेदकों के साथ धोखाधड़ी करने का आरोप
लगाते हुए समाजसेवियों ने सूबे की चर्चित आरटीआई कार्यकत्री उर्वशी शर्मा के
नेतृत्व में एकजुट होकर एक बार फिर हुंकार भरी है और यूपी के मुख्य सूचना आयुक्त जावेद
उस्मानी द्वारा सूचना आयोग की फाइलों को विनष्ट करने के लिए बीते साल मार्च में
जारी किये गए एक आदेश को अवैध बताते हुए
इस आदेश को हाई कोर्ट इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ में चुनौती देने का निर्णय लिया
है. समाजसेवियों ने जावेद उस्मानी के साथ साथ सभी 8 सूचना आयुक्तों और आयोग के
सचिव राघवेन्द्र विक्रम सिंह को भी कटघरे में खड़ा करते हुए इन सभी पर अपने निजी
स्वार्थ साधने के लिए सूचना आयोग के रिकॉर्ड को अवैध रूप से नष्ट करने का गंभीर
आरोप लगाते हुए इस मामले में आर-पार की जंग का ऐलान कर दिया है.
उर्वशी ने बताया कि जावेद उस्मानी ने बीते
साल फरवरी में सीआईसी बनने के 1 माह बाद ही मार्च के महीने में एक तुगलकी आदेश
जारी करके यूपी के सूचना आयोग की पत्रावलियों को 6 महीने बाद ही नष्ट कराना शुरू
कर दिया था. बकौल उर्वशी केंद्र सरकार और
सूबे की सरकार ने आरटीआई के प्रकरणों से सम्बंधित पत्रावलियों को कम से कम 3 वर्ष
तक रखे जाने की स्पष्ट अनिवार्यता रखी है लेकिन यूपी सूचना आयोग के भ्रष्टाचार और
अक्षमता के प्रमाण बाहर न आने देने की साजिश के तहत उस्मानी ने अपने अधिकारों से
परे जाकर पत्रावलियों को विनष्ट किये जाने के नीतिगत विषय पर केंद्र और राज्य
सरकार की नीतियों को ताक पर रखकर यह तुगलकी आदेश जारी किया जिसके विरोध में
उन्होंने देश के राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,प्रधानमंत्री के साथ साथ सूबे के
राज्यपाल,मुख्यमंत्री,मुख्य सचिव और प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र
लिखने के साथ साथ सूबे के डीजीपी और लखनऊ के एसएसपी को पत्र लिखकर सूचना आयुक्तों
के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखाने की मांग की है.
इस लड़ाई में उर्वशी का साथ दे रहे लखनऊ के
समाजसेवी तनवीर अहमद सिद्दीकी ने बताया कि अधिनियम की धारा 15(4) के तहत सूहना
आयोग के कार्यों के साधारण अधीक्षण,निदेशन और प्रबंध के सम्बन्ध में ही नियम बनाए
जा सकते हैं और रिकॉर्ड को नष्ट करना नीतिगत विषय होने के कारण इस सम्बन्ध में अधिनियम
की धारा 15(4) के तहत नियम बनाए ही नहीं जा सकते हैं. तनवीर ने बताया कि आयोग की
किसी फाइल की सूचना आरटीआई में मांगने पर सूचना दूसरी अपील की सुनवाई पर ही दी जा
रही है इससे पहले नहीं और दूसरी अपील की पहली सुनवाई सामान्यतया सूचना मांगने के 9
महीने बाद ही हो पा रही है ऐसे में सूचना
आयोग 6 महीने में ही फाइल नष्ट कर आयोग अपने भ्रष्टाचार के सबूतों को नष्ट कर रहा
है और दूसरी अपील की सुनवाई पर आरटीआई आवेदक को इस नियम का हवाला देकर टरकाया जा
रहा है. तनवीर ने बताया कि इसीलिये यूपी के समाजसेवियों ने उर्वशी शर्मा के
नेतृत्व में इस लड़ाई को लड़ने और मामले को हाई कोर्ट में ले जाकर सूबे के आरटीआई
आवेदकों को न्याय दिलाने का मन बनाया है.
सूचना आयुक्तों के द्वारा इस गैरकानूनी आदेश को जारी करने और इस गैरकानूनी आदेश के अनुसार कार्य कराने को भारतीय दंड विधान और पब्लिक रिकार्ड्स एक्ट के तहत 5 साल की सजा वाला अपराध बताते हुए इस मुहिम का नेतृत्व कर रही समाजसेविका उर्वशी ने बताया कि सूचना आयुक्तों के ऐसे गैरकानूनी कृत्यों से सूबे का नाम पूरे संसार में बदनाम हो रहा है अतः इस तुगलकी आदेश को हाई कोर्ट से रद्द कराने के बाद इस आदेश को करने वाले और इस आदेश के आधार पर रिकॉर्ड को नष्ट करने वाले लोकसेवकों के खिलाफ न्यायालय के माध्यम से एफ.आई.आर. लिखाकर वैधानिक कार्यवाही कराई जायेगी. |
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