लखनऊ l कहने को तो उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक आवादी वाला प्रदेश होने के कारण औधोगिक घरानों , पूंजीपतियों और निवेशकों के लिए सर्वाधिक संभावनाओं वाला प्रदेश होना चाहिए पर बदहाल कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार को पोषित करने के निहितार्थ लागू छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही और ऊर्जा की कमी के चलते ही सूबे में औधोगिक क्षेत्रों में बड़े पूंजीनिवेश की दर लगभग नगण्य है l यह इस
प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि आजादी के 67 साल बाद भी उत्तर प्रदेश पर पूंजीपतियों का विश्वास जम नहीं पाया है और आज यूपी की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन ही निजी क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है l
कहने को तो सूबे की सभी सरकारें ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के बड़े बड़े सरकारी दावे करती रही है और प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की बात करती हैं पर सामाजिक संस्था 'तहरीर'* के संस्थापक ई० संजय शर्मा की एक आरटीआई ने इन सरकारी दावों की पोल खोल दी है l
*'तहरीर' { Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative for Revolution – TAHRIR } लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है l
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के ऊर्जा क्रय अनुबंध निदेशालय के जनसूचना अधिकारी कल्लन प्रसाद द्वारा संजय को दिए गए जबाब के अनुसार यूपी में निजी क्षेत्र में रोजा तापीय विधुत परियोजना में 1200 मेगावाट, लैंको अनपरा तापीय परियोजना में 1200 मेगावाट और बजाज एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 5 परियोजनाओं में कुल 450 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु पूंजीनिवेश किया गया है l संजय बताते हैं कि
इस प्रकार सूबे में केवल 2850 मेगावाट उत्पादन हेतु ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश किया गया है जबकि वर्ष 2014-15 क़े लिए यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 14500 मेगावाट है और सूबे में 1400 मेगावाट विद्युत ऊर्जा की कमी है l
संजय बताते हैं कि आरटीआई में दिए गए इस जबाब के अनुसार यूपी ने पूर्ववर्ती सीएम मायावती के कार्यकाल में एनर्जी एक्सचेंज से वर्ष 2011 -12 में 34.3 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी थी जो वर्तमान सीएम अखिलेश यादव के सत्ता संभालने के बाद और वर्ष 2012 -13 में 45.5 मिलियन यूनिट था पर वर्ष 2013 -14 में आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1936.38 मिलियन यूनिट हो गया जबकि आम जनता को विद्युत आपूर्ति के सन्दर्भ में कोई राहत
नहीं मिली थी l संजय बताते हैं कि वर्ष 2011-12 में मायावती के कार्यकाल में भी यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 13947 मेगावाट थी l
संजय का कहना है कि वर्ष 2014 -15 में भी मात्र 6 माह में सितम्बर 2014 तक यूपी ने एनर्जी एक्सचेंज से1518.23 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी है और 1251.14 मिलियन यूनिट बिजली बैंकिंग के जरिये क्रय की है जो पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक है पर इतने पर भी आम जनता का विद्युत आपूर्ति के लिए त्राहि-त्राहि करना स्वतः सिद्ध करता है कि वैद्युत ऊर्जा के प्रवंधन में अखिलेश यादव पूर्ववर्ती सीएम मायावती
मुकाबले अक्षम रहे हैं l
वर्ष 2016-17 में यूपी की विद्युत आवश्यकता बढ़कर लगभग 19622 मेगावाट हो जाने के मद्देनज़र कुशल ऊर्जा प्रवंधन की आवश्यकता पर बल देते हुए संजय ने 24 घंटे निर्वाध विधुत आपूर्ति पाने को आम नागरिक का मानवाधिकार बताते हुए सरकार से अपनी जबाबदेही को सच्चे दिल से आत्मसात करते हुए पारदर्शिता के साथ काम करके कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने और भ्रष्टाचार को पोषित करने के निहितार्थ लागू
छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही को समाप्त कर सूबे में विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में निजी क्षेत्र द्वारा पूंजीनिवेश के अवसरों को अमली जामा पहनाकर प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की अपील भी की है l
Scanned Copy of two pages of RTI reply is attached.
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